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कहते हैं कि पेरिस के एक डॉक्टर ने बन्दरों की यौन-ग्रन्थियों को वृद्ध मनुष्यों में प्रत्यारोपण कर उन्हें फिर से युवा बनाया। गिब्सन ने लिखा है---जब रोम के पतन का समय आया, तब सैनिकों के आत्म-निर्णय के सामर्थ्य में क्षीणता आयी, फलतः उनके टोप, कवच ढीले हो गये। बताया गया कि उनके नैतिक पतन का एकमात्र कारण जीवन रस की न्यूनता थी। डॉक्टर वर ने अपनी एक पुस्तक में ग्रन्थियों की सक्रियता और निष्क्रियता का वर्णन करते हुए लिखा है-वाटरलू की लड़ाई में नेपोलियन लड़ रहा था, उसकी पिट्यूटरी ग्रन्थि में विकार उत्पन्न हो गया, अतः वह सफल नहीं हो सका। यह सारा वृत्तान्त पोस्टमार्टम के बाद ज्ञात हुआ।
इन उपर्युक्त घटना-प्रसंगों से हम भली-भांति समझ सकते हैं कि हमारे शरीर, मन और प्रतिभा-विकास में ग्रंथियों का महत्त्वपूर्ण कर्तृत्त्व है इसलिए जब ये ग्रन्थियां दुर्वल होती हुई प्रतीत हों, तब कुछ ऐसे योगासनों का विशेष अभ्यास किया जाना चाहिए, जिनसे वे ग्रन्थियां फिर से नया यौवन प्राप्त कर सकें। उत्तेजक औषधियों तथा नशीले पदार्थों का सेवन
जो एन्टीवायटिक औषधियों तथा नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं, वे असमय में बूढ़े प्रतीत होने लगते हैं । डॉक्टरों का कहना है--यदि मनुष्य ४०-५० की आयु में बूढ़े जैसा दिखाई देने लगे तो उसका विधिवत् इलाज होना चाहिए क्योंकि वह बुढ़ापा नहीं, अपितु बीमारी है। लंदन के 'मेडिकल साप्ताहिक फेमिली' के डॉक्टर का कहना है-प्रत्येक प्रौढ व्यक्ति हर बीसवें वर्ष एक इंच सिकुड़ जाता है, किन्तु जो उत्तेजक औषधियों व नशीली वस्तुओं का सेवन करते हैं उनके स्नायु तेजी से सिकुड़ने लगते हैं। रक्त गाढ़ा हो जाता है और चेहरे पर कालिमा छा जाती है। दवा मात्र गिरते स्वास्थ्य को सहारा देती है । आखिर खड़े रहने के लिए अपना ही सामर्थ्य चाहिए। __असंतुलित भोजन समय से पूर्व मानव को वृद्ध बनाता है। वर्तमान स्वास्थ्यवेत्ता लोगों का कहना है, खाद्य पदार्थों का सही चुनाव हमारी जिन्दगी को काफी लम्बी कर सकता है। पेट पर अत्याचार करने वाले लगभग सभी लोग अपने हाथों अपनी मृत्यु को बुलाते हैं । हमारे द्वारा अज्ञानवश जितनी गल्तियां होती हैं, उनमें सबसे ज्यादा भोजन सम्बन्धी गल्तियां हैं। यही कारण है कि मौत से मरने वालों से अधिक संख्या बेमौत मरने वालों की है।
मसलमश हूर कहा करते थे-४०, ५० की उम्र तक तुम्हें अपने पेट का पूरा ख्याल रखना चाहिए। फिर पेट तुम्हारा स्वतः ख्याल रखेगा। गांधीजी कहा करते थे कि भोजन के बारे में संयम करने वाला निश्चित ही दीर्घ जीवन का अधिकारी बन सकता है। मैं १२५ वर्ष अवश्य जीऊंगा। मेरा अपना अनुभव है कि स्वाद के लिए भोजन करने वाला जीवन में प्रकट होने वाली महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों से वंचित रह जाता है। उसके ज्ञान-तन्तु अतिरिक्त भार से दबे रहते हैं । फलतः वह न बौद्धिक क्षेत्र में प्रगति कर सकता है और न ही आध्यात्मिक क्षेत्र में।
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तुलसी प्रज्ञा
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