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पान की बात सोचता है। सच तो यह है कि प्रत्येक विषय व्यक्ति का भोग करता है अर्थात् उसके प्रतिफल में मानव को कुछ चुकाना होता है, उससे कई गुना अधिक सामर्थ्य नियंत्रित भोगवृत्ति वाले व्यक्ति में होता है । आध्यात्म दर्शन के अनुसार प्रत्येक इन्द्रिय-विषय-सम्पर्क, मानसिक संकल्प, निर्लक्ष्य जीवन-दिशाएं, स्वप्न आदि सभी प्रकार के असत् कर्म व्यभिचार हैं, क्योंकि इन प्रवृत्तियों से जीवन विक्षिप्त रहता है । इस विक्षिप्तता-व्याकुलता से रहित जीवन जीने वाला त्याग और भोग दोनों के बीच की निष्कंटक पगडंडियों पर अपनी यात्रा करता है।
__ योग शरीर और मन दोनों पर अनुशासन करता है। योग स्वस्थ जीवन जीने की एक कला है । इसका प्रारम्भ होता है आसनों के अभ्यास से । आसन क्रिया धीरे-धीरे हमारे सम्पूर्ण शरीर को प्रभावित करती है । जैसे
आसनों से मांसपेशियां मजबूत होती हैं। जोड़ों में लचीलापन आता है।
पाचक रस ठीक बनता है। फेफड़ों की श्वसनक्रिया संतुलित होने से रक्त-संचार में सुविधा प्राप्त होती है।
शरीर के सभी सूक्ष्म-स्थूल अंग-प्रत्यंगों की मालिश होने से उनकी जीवनी शक्ति बढ़ती है।
जिम्मेदारियों और तनावों के बीच खड़े व्यक्ति के साथ जो बीतती है, उससे भगवान ही बचाये । स्थिति यह है कि कुछ लोग परिस्थितियों से लड़ते-लड़ते अपने प्रतिबिम्ब से लड़ने लगते हैं। इस स्वयं के साथ छिड़े कुरुक्षेत्र में विजयी बनने के लिए जरूरी है, अपना सशक्त चरित्र बल और हर कठिनाई को पुलकन के पानी में भिगोकर पी लेने की हिम्मत । इस हताशा और निराशा से बचने का एकमात्र उपाय है-सरल, निर्मल और निर्विकार हंसी। जब-तब हंसते रहना। चिन्ता की डायन जिसके पीछे हो जाती है, उसकी जवानी क्या, पूरा जीवन ही समाप्त हो जाता है। जीवन का गुलाबी फूल देखते-देखते सूख जाता है। चिन्तित व्यक्तित्व पर बुढ़ापा तेजी से उतरता है अतः अपने स्वभाव को शान्त व मधुर बनाये रखने का अभ्यास करें।
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'श्वास हमारे जीवन को निरन्तर बदलता रहता है। यह बहुत बड़ी सच्चाई है। जब तक श्वास की गतिविधि को नहीं बदला जाता, तब तक साधना में विकास नहीं किया जा सकतालम्बी यात्रा नहीं की जा सकती।'
-जेठालाल एस. झवेरी fagarangangaatanganganganganganganganagariporngangantonangernama
तुलसी प्रज्ञा
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