Book Title: Tulsi Prajna 1991 07
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 28
________________ उपद्रव रहता था। विपाकसूत्र (३,५६-६०) में विजय नाम के दुस्साहसी डाकू की कथा है। विजय इतना प्रभावशाली डाकू था, कि अक्सर वह राजा के लिये कर वसूला करता था। चोरपल्लियां प्रायः वनों, खाइयों और बांस के झुरमुटों से घिरी तथा पानी वाली पर्वतीय घाटियों में बसी होती थीं । डाकू निडर होते थे। उनकी आंखें तेज होती थीं तथा वे तलवारबाजी में निपुण होते थे। आचारांगसूत्र (२।१३।१।८) के अनुसार--लम्बी मंजिल पार करने पर यात्री बहुत थक जाते थे । इसलिये उनके सुस्ताने का प्रबन्ध था। पैरों को धोकर मालिश की जाती थीं। बृ०क०सू० भाष्य (१२२६) बतलाता है कि जैन साधु केवल धर्मप्रचार के लिये ही यात्रा नहीं करते थे, अपितु वे जहां जाते थे, उन स्थानों की भलीभांति जांच-पड़ताल करते थे, इस पड़ताल को "जनपद-परीक्षा" कहा जाता था। यात्रा करते-करते श्रमण कई भाषायें सीख लेते थे। विविध प्रकार के इस ज्ञान का लाभ उनके शिष्यों को भी मिलता था। अनजानी भाषाओं का ज्ञान प्राप्त करके साधुजन उनमें ही लोगों को उपदेश देते थे। जैनश्रमणों की जनपद-परीक्षा प्रणाली से और भी कई बातों का ज्ञान उपलब्ध होता है। यथा-भिन्न-भिन्न प्रकार के अन्न उपजाने के लिये किस प्रकार की सिंचाई आवश्यक है। कुछ प्रदेश खेती के लिये केवल वर्षा पर निर्भर रहते, जैसे लाट (गुजरात) प्रदेश। कहीं नदी से सिंचाई होती, जैसे सिन्ध । कहीं तालाब के जल से, जैसे द्रविड़देश । कहीं कुओं से सिंचाई होती, जैसे उत्तरापथ । तो कहीं बाढ़ का पानी उतर जाने पर अन्न बोया जाता। कहीं पर धान बोया जाता। बृ०क सू० के भाष्यकार इस प्रकार से स्थान का उदाहरण "कानन-कीप" नामक स्थान का देते हैं। आवश्यकचूणि (पृ० ५८१) में चार तकनीकी शब्द है-छन्द, विधि, विकल्प और नेपथ्य । छन्द अर्थात् भोजन, अलंकार आदि, विधि अर्थात् स्थानीय रीतिरिवाज, विकल्प अर्थात् खेतीबाड़ी, घर-द्वार आदि और नेपथ्य से वेशभूषा की बात। ये चारों शब्द देशकथा के विषयों पर प्रकाश डालते हैं। बृ०क०सू० भाष्य (३०६६-३०७२) व्यावसायिक काफिलों, माल तथा मार्ग की विपत्तियों का विस्तृत वर्णन करता है। उसके अनुसार ये काफिले पांच तरह के होते थे (१) मंडी---माल ढोने वाले काफिले (२) भारवह-अपना भार खुद ढोने वाले काफिले (३) बहलिका-ऊंट, खच्चर, बैल वाले काफिले (४) औदरिक-आजीविका के लिये एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमने वाले मजदूरों के काफिले (५) कार्पटिक-भिक्षुओं तथा साधुओं के काफिले काफिले जिस माल को ढोते थे, उसे "विधान" कहते थे। यह माल चार प्रकार का होता था : तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96