Book Title: Tulsi Prajna 1991 07
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 44
________________ वालो दूखे ओषध कर साजो कियो, खेत में जइ नै नीलो खेत वाढ़ियो जी रे । एक वचायो इग्यारी लीधी चोरटे, लोकां फिट-फिट कर नै पुर सूं काढियो जी रे॥६२।। सेठ ने देखी तसकर ध्यायो पकड़वा, ठोकर लागी दोड़तो हेठो पड़यो जी रे।। किण ही तिण ने उठाई बेठो कियो, अमल उदक पाई में चंगो करयो जी रे ॥६३।। बिजयसिंघजी पड़हो फेरायो सहर में, दीवा ढांको करो बूढां री चाकरी जी रे।। लिछ्मणजी नै कृष्ण जी नी गति कहो, चरचा करसां सूत्र मुंह आगल धरी जी रे ॥६४॥ सामग्री में लाडू दिरावै तप तप्यां, पेटभरा इम जाण आसी पांतरै जी रे । नारी कहै तूं म्हारी हाटे जाय तो, लोटो देता जाइज्यो ए सानी करै जी रे ॥६५॥ भिक्खु भणे ए सानी सावद्य आमना, घी चोरूं चोरूं नी कथा कही जी रे । लाय में बलती गायां बाहिर काढिय, चूंण लूवारयां जापायती काढ नही जी रे॥६६॥ केइ कहै गाडा नीचे टाबरयो, आतो देखी पापी उठावै नहीं जी रे । कीड़ा धी कुत्ती लटां गजायां कातरा, इण लेखे तो ए पिण उठावणा सही जी रे ॥६७।। पाछो मेले पंखी माला थी जइ पड़ यो, तपस्वी श्रावक समाइ में हेठो पड़े जी रे । तांगी मृगी नींद झोलादिक व्याविया, तिण ने उठाई पाछो बेठो क्यूं नहीं करै जी रे ॥६॥ अनुकंपा रा दृष्टांत किण अणुकंपाआणी सेर चिणादिया, किणही पीसदियान किणही पोयदिया जी रे। जलपावो रे जलपावो कहतो फिरै, ए सहूं पाप पैदास पहिलीकिण कियाजी रे ॥६६॥ अणुकंपा आण मूला खवायां स्यं हुवै, म्हे तो कहां छां मूला मांहि पाप छै जी रे।। मूला में तो पुण्य पाप बेहुं अछ, मूला खवायां सरधण री स्यूं थाप छै जी रे ॥७०॥ आज्ञा रा दृष्टांत आज्ञा बाहिर धर्म कई इसी कहै तिण नै पाछो पूछी तो लीजिये जी रे । थारे आ पाग कठा तूं आई कुण रंगी, किण दिवाई पक्की पूछा कीजियै जी रे॥७१।। नदी उतरियां धर्म तो फूल चढावियां, धर्म कहीज प्रभु री भक्ति भाल नै जी रे । म्हे तो आली टाला सूकी उतरां, थे तो हरियां चढावो सूका टाल नै जी रे ॥७२॥ आचार रा दृष्टांत अबारूं पंचमो आरो पूरो नहीं पल, चोथा आरा में तेलो हुतो केहवो जी रे। चोको कर जीमाई एक-एक ने, जीमण करनें भूडो दीठो जेहवो जी रे ॥७३॥ आपां विचे तो चोखा केई इसी कहै, तेलो कीधो आधी खाय नै जी रे। तीन एकासणा कीधा छ छै खाय नै, कुण सिरे छै कहि दै नाम वताय नै जी रे॥७४।। धोवण पाणी पीवै कष्ट कर घणा, लाखां रो देवालो किण ही काढियो जी रे। टको देई नै तेल गुलादिक लावियो, ते किम मिटसी मोटो कलंक चाढियो जी रे ॥७५।। तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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