Book Title: Tulsi Prajna 1991 07
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 49
________________ पुस्तक समीक्षा १. मरुधरा का वैभव : डीडवाना (नगर का परिचय मूलक शोध-संदर्भ ग्रंथ) प्रथम संस्करण-१६६१ । मूल्य-१००) रुपये । पृष्ठ संख्या-२१२ । संपादक-डॉ. गोपीकृष्ण राठी 'मधुकर' । प्रकाशकसंस्कृति संगम, डीडवाना (राज.)। १२ अक्टूबर सन् १९७३ को आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने "मरुधरा का वैभव : डीडवाना" के प्रकाशित होने की सूचना पर प्रसन्नता व्यक्त की थी और 'ग्रंथ से अनेक महत्त्वपूर्ण विषयों पर प्रकाश पड़ेगा'-ऐसा कहकर अपनी शुभकामनाएं की थीं। भगवत्कृपा से वे शुभकामनाएं फलीभूत हुई और दो दशक बाद यह सद्ग्रन्थ प्रकाश में आया। पिछले दिनों 'फतहपुर परिचय', 'बिसाऊ-दिग्दर्शन', सिमला (खेतड़ी), चिड़ावा, मण्डावा आदि अनेकों नगरों का परिचय लिखा गया और प्रकाशित किया गया। चूरू का इतिहास इतिहास-संशोधक श्री गोविन्द अग्रवाल ने अपने शोधपूर्ण इतिहास में दिया । मानो यह आत्मावलोकन की एक श्रृंखला बनी है। इस श्रृंखला में डीडवाना पर प्रकाशित प्रस्तुत ग्रंथ का विशेष महत्त्व है। १३वीं शती (विक्रमी) की कृति-सकलतीर्थ स्तोत्र' में सिद्धसेन सूरि लिखते खंडिल डिडआणई नराण हरसउइ खट्टक से । नागउर मुविदंतिसु संभरि समि वदेमि--- ----कि खंडिल्ल, डिडूवाणक, नाराण, हरसौर, खाटू, नागौर आदि सांभर (शाकम्भरी) देश में तीर्थ हैं। सोमप्रभसूरि के 'कुमारपाल प्रतिबोध' ग्रन्थ में पूर्णतल्ल गच्छ आचार्य श्री दत्तसूरि के बागड़-भ्रमण का वृत्तान्त है। वृत्तान्त अनुसार रयणपुर के राजा यशोभद्र ने डिडूवाण में दीक्षा ली और अपने बहुमूल्य मुक्ताहार को विक्रय कर उससे जिनालय का निर्माण किया। यह जिनालय डिडूवाणा में निर्मित हुआ होगा, किन्तु खंडिल्ल (लाडनूं) में एक मंदिर माथुर संघ के आचार्य श्री गुणकीत्ति भक्त साहु देल्ह सुत श्रेष्ठी बहुदेव और सर्वदेव (खांडिल्लपालवंशीय)-दो भाइयों ने सं० ११३६ में बनवाया था। उस मंदिर में गुण कीत्तिसूरि शिष्य अनन्तकीत्ति के शिष्य खण्ड १७, अंक २ (जुलाई-सितम्बर, ६१) __ E Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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