Book Title: Tulsi Prajna 1991 07
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 48
________________ विस्तार सहित एक एक दिष्टंत वागर्यो, ग्रन्थ घणो रस जय कृत दीठां पावसी जी रे । अक्षर अल्प चोटी बंध ए पद रच्या, वक्ता न्याय बतायां स्वाद आवसी जी रे ॥१२५।। धिन-धिन हो भिक्खु थारी बुद्ध भणी, संकट परीषह सही सही धर्म दीपावियो जी रे । दिष्टंत शतक जीव ऋषि ए जोड़ियो, पोता चेले कवित कला रस पावियो जी रे ॥१२६॥ दिष्टंत सुणो रे भिक्खु स्वाम नां, भिक्खु कीधी भरत में नामना जी रे । दिष्टंत जोड्यां छ गाम गाम ना जी रे, जीव ऋषि इं किंचित कीधी आमना जी रे ॥१२७॥ दिष्टांत सुणो रे भिक्खु स्वाम ना မ r ereprenewsfree rest လတ် ငါတို့ ငါး ငါး ငါး ငါး * जैन विश्व भारती संस्थान, मान्य विश्वविद्यालय, लाडनू। छात्रवृति अनुदान परियोजना जैन विश्व भारती संस्थान का सत्र प्रारम्भ हो गया है और स्नातकोत्तर स्तर पर निम्न विषयों का अध्यापन हो रहा है। (१) जैनोलोजी (जैन विद्या) एवं तुलनात्मक धर्म-दर्शन । (२) प्राकृत भाषा साहित्य एवं भाषा-शास्त्र । (३) अहिंसा का अर्थशास्त्र और अहिंसक समाज-रचना। (४) व्यक्तित्व विकास का मनोविज्ञान और जीवन-विज्ञान । अध्यापन-कार्य के अतिरिक्त उक्त विषयों पर शोध-कार्य भी हो रहा है । संस्थान की ओर से छात्रों तथा शोधार्थियों को छात्रवृति र देने का प्रावधान है। छात्रों को ५००/- रुपये मासिक तथा शोधार्थियों * को २०००/- रुपये देने हेतु जो भी व्यक्ति सहयोग करना चाहें वे एक * वर्ष की राशि संस्थान के कार्यालय में जमा करवाने की कृपा करें। * संस्थान इस राशि का उपयोग करते समय व्यक्ति विशेष, फर्म या , ट्रस्ट, जिनके द्वारा राशि प्राप्त होगी, उसका नामोल्लेख करेगा। इस प्रारम्भिक वर्ष में समाज द्वारा उदारता से सहयोग प्राप्त होने * की अभीप्सा के साथ सादर प्रार्थना है । कुलसचिव မမဖင့်သို့ ရွှီး တို့ တို့ ၏ freegaogi-referretterfarenger-rrrrrrjasti grofer * तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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