Book Title: Tulsi Prajna 1991 07
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 45
________________ 1 केवल पामै बेघड़ी सुध संजमधरचो, वीरजी विविध तपसूं तनक्यूं गलियोजी रे । सातसो केवल सीझ्या बीजायूंही रह्या, प्रभवादिक पिण संयम शुद्ध न पालियोजी रे ॥ थानक भायां निमित्ते निपजाव्यो कहे, जमांइ कद को सीरो राधज्यो जी रे I सोगन कीधा सासू सीरो नहीं करे, डावड़े कद कह्यो सगपण सांधज्यो जी रे || ७७॥ जैमलजी रा टोला मां स् नीकल्या, संवत अठार बावनें सोले जणा जी रे थानक छोडयो देखादेख पालखो बणायो, ते देखी लोक डरया घणा जी रे ॥ ७८ ॥ तीन तूं बड़ा अधिका आज परठे दिया, सील आदर नै छठे महीने कही इसी जी रे । एक त्रिया मैं आज तजी इम क्यूं कहो, ढीला पड़या सेंठा होता होवसी जी रे ॥ ७६ ॥ खत लिखे ते देवाल्या साहूकार कै एक सरीखा लिख्या ज्यू चालै नहीं जी रे । सूत्र सहुनां सरीखा सुद्ध पालै नहीं, मोटा घर नों रंडापो ए छँ सही जी रे ||८०|| साधू कुण साधू कुण बताय दो, नागा किता ढाक्यां किता नगर में जी रे । लखण बताऊं नेणांकारी हूं करूं, परख लीजै निरख लीजै निजर में जी रे ।। ८१ ।। गुलाब ऋषि करूड तपस्वी वंदियै, आटो पीवै बेलै-बेलै तप करें जो रे । एक चोलपटो ओढे सीत सहै घणो, म्हारो नील्यो बेल सूका तृण चरै जी रे ॥८२॥ अंकुरा ऊठिये जी रे । जी रे ॥ ८३ ॥ इकावन रुमिया थानक निमित्ते उदक्या, भिक्खु भाखं पहिली जन्मपत्री वरसी फल पछे हुवै, छै काया रा प्राण पछँ लूंटियै देणो न देसी तो देवाल्यो वाजसी, साहुकार इस सीखवै निज नंदन सुण-सुण कढ पाड़ोसी देवालियो, सीख न दे ओ छाती बालै अम तणी शुद्ध न पाल्यां खोटा नाणां सारिखा, तांबो देखी वाण्यो ते वांदी लिये रूपो देखी नै विशेष वांदी लिये, खोटो नाणो ते देख ते टाली दियै असल मुनि ते तंतू न राखं सर्वथा, परीषह संकट जीत साधू सहु लज्या जी रे । आहार करें ते पहले परीषह भांगिया, म्हे तो श्वेताम्बर शास्त्र देखी घर तज्या जी रे ॥ ८ ॥ छते मार्ग नीला पर नहीं चालिये, भेषधारी नैं भोखूजी कही इसी जी रे । म्हारो नाम लीधो तो हूं पुर मझे, कहि सूं भीखनजी नीला में गया धसी जी रे ॥ ८८ ॥ विविध प्रकार नां दृष्टांत कुण ताण इण नरक में जातां जीव ने, पइसो जल पर धरियां हेठो किम पड़े जी रे । ते हीज तांबा ने कूट ने कीधी बाटकी, अधर रहै जल पर जंतू इम तिरै जी रे ॥ ८८ ॥ खोड़ो खोल्यो रोयो खांत नीकल्या, लोकां पूछ्यो मांहे थे स्यूं घालियो जी रे । मांहे तो म्है एहीज घाल्यो स्यूं करूं, घाल्यो नीकलसी लोकां रो तो पालियो जी रे ॥ ८६ ॥ कोयलारी राब काला बासण में, पुरसणवाला जीमणवाला बिहु अमावस नीं रात कालो टालज्यो, हिवे स्यूं टालै एहवा जैन रा वखाण में वावेचा ताना करै घणा, जिनंद के जिनंद का चेला ज्यां गावै बजावै नाचे ज्यंं एह जाणज्यो, संतां आगे नाचै क्यूं करो मने खण्ड १७, अंक २ (जुलाई-सितम्बर, ६१ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only भणी जी रे । जी रे ॥ ८४ ॥ जी रे । जी रे ।। ८५ ।। अंधा जी रे । जिंदा जी रे ॥६०॥ कने जी रे । जी रे ।। ६१ ।। ६५ www.jainelibrary.org

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