Book Title: Tulsi Prajna 1991 07
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 26
________________ श्रद्धांजलि स्वर्गीय डा० काशीप्रसाद जायसवाल काशीप्रसाद जायसवाल चार अगस्त सन् १९३७ को दिवंगत हुए। सन् १९१५ से जबकि 'बिहार एण्ड उड़ीसा रीसर्च सोसाइटी' की नींव रखी गई, मृत्यु पर्यन्त वे भारतीय बुद्धिवर्ग में अग्रगण्य बने रहे। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ० राजेन्द्र प्रसाद ने उनका स्वर्गवास होने पर लिखा था कि अपना अध्ययन समाप्त कर जैसे ही डॉ० जायसवाल भारत लौटे तो उन्हें बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में अध्यक्ष पद ग्रहण करने का प्रस्ताव किया गया। बाद में कलकत्ता-विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग के कुछ समय तक वे प्रोफेसर रहे भी; किन्तु वकालत करना जहां उनकी अपेक्षा थी वहां इतिहास-संशोधन उनकी हार्दिक विवशता थी। बहुत ही विलक्षण बात है कि वे अपने समय के लॉ ऑफ इनकमटैक्स के अद्वितीय वकील थे। पटना हाईकोर्ट बार एशोसियन के प्रेजीडेन्ट पी. सी. मनुक ने लिखा है-"He had specialised in this line and there was hardly an Income Tax case of any importance in this Province (Bihar) in which he did not appear—and generally led---for the assessee." दूसरी ओर वे प्राचीन भारतीय इतिहास, पुरातत्त्व, लेखविद्या और मुद्राशास्त्र में इतने पारंगत थे कि जहां बड़े-बड़े दिग्गज परिश्रान्त हो जाते, डॉ० जायसवाल वहीं से नया अध्याय शुरू कर देते। उनके व्यक्तित्व में कितना 'बेरिस्टर' और कितना 'रिसर्च-स्कॉलर' का मिश्रण था—यह कहना कठिन है। उनकी मेधा और अभिरुचि उन्हें इतिहास की ओर मोड़ती और विषयासक्ति कानून और न्यायालयों में घसीट लाती। वास्तव में एक रीसर्चस्कॉलर दुर्भाग्य से बेरिस्टर बन गया था। फिर भी जैसा कि डॉ. राजेन्द्रप्रसाद लिखते हैं-"It is not for a layman like me to assess the value of his researches, but I am not aware that any thing he has written or advocated as a result of his researches has been sesiously challenged by scholars or displaced or falsified by later researches." वास्तव में उनकी रिसर्च ने अनेकों मूर्धन्य विद्वानों को अपने निर्णयों पर पुनर्विचार को बाध्य किया। डॉ. स्मिथ को अपने ग्रंथ-'भारत के प्रारंभिक इतिहास' को संशोधित करना पड़ा। दूसरे विद्वानों को भी उनके 'अन्धकार युगीन भारत' और 'हिन्दू-पोलिटी' ने अनेकों प्रेरणाएं दीं। विशेष रूप से जैन जगत् तो डॉ० जायसवाल का ऋणी है कि उन्होंने “खारवेल-प्रशस्ति" के मूलपाठ और अर्थ-संदोहन का भगीरथ प्रयास किया। -परमेश्वर सोलंकी तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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