Book Title: Tulsi Prajna 1991 07
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 31
________________ उन्नत अवस्था में था । रेशमी वस्त्र प्राय: चीन से आता था ( चीनांशुक), गुजरात की पटोला साड़ियां काफी प्रसिद्ध थीं । काशी के वस्त्र भी विख्यात थे । बृ ०क०सू० भा० (३९१२ ) के अनुसार - नेपाल, ताम्रलिप्ति, सिंधु और सौवीर अच्छे कपड़ों के लिये स्मरण किये जाते थे । एक और ग्रन्थ -- अन्तगडदसाओ ( पृ० २८ - २६, लन्दन) से जानकारी मिलती है, कि भारतवर्ष में विदेशी दास-दासियों की भी खूब खपत थी । वंसु, यूनान, सिंहल, अरब, बलस और फारस आदि देशों से इस देश में दासियां आती थीं । ये दासियां अपने-अपने देश की भाषा और वेशभूषा का व्यवहार करतीं । इस देश की भाषा न जानने के कारण केवल इशारों से ही काम चलातीं । आवश्यकचूर्णि ( पृ० १२० ) के अनुसार -- कुछ इसी प्रकार कतिपय विदेशी भी अपने व्यवसाय में स्थानीय भाषा की अज्ञानता के कारण केवल इशारों से सौदा सम्पन्न किया करते थे । वे अपने माल की ढेरियां लगा देते और फिर उन्हें अपने हाथों से ढंक देते । सौदा पटने तक वे उसे ढंके रहते थे । ये कुछ उदाहरण हैं, जो द्रष्टव्य हैं । श्रमण यायावरों के बहुविध वर्णनों से साहित्य भरा पड़ा है । यों हम अतीत में झांकें तो श्रमणों की सतत यायावरी ने भारतीय साहित्य तथा संस्कृति-सभ्यता की अमूल्य सेवायें की हैं, यह क्रम आज भी मारी है । युगप्रधान आचार्यश्री तुलसीगण की यायावरी [विक्रमी संवत् १९९३ से २०४८ तक ] सरदारशहर- ३६४, गंगाशहर - ३४३, छापर - १३३, चतुर्मास स्थल गंगापुर तक - ४३२, बीकानेर- ६४५, बीदासर - २५२, लाडनूं - ३३५, राजलदेसर - १५१, चूरू - २६६, सुजानगढ़-२३२, श्रीडूंगरगढ़ - २६६, राजगढ़- ३१६, रतनगढ़ - १२०, जयपुर - ३६१, हांसी - ७४७, दिल्ली -१२३२, सरदारशहर - ५६०, जोधपुर- ७१०, बम्बई - १५२२, उज्जैन - १४२०, सरदारशहर - १२४०, सुजानगढ़ - ६०३, कानपुर१५६५, कलकत्ता-१४४३, राजसमन्द - ३०४०, बीदासर- १३४१, उदयपुर - १२१०, लाडनूं-ε६०, बीकानेर - ११५०. दिल्ली - १५७२, बीदासर - १३२४, अहमदाबाद१६५४, मद्रास - २४६०, बंगलौर - २६००, रायपुर - २७३०, लाडनूं - १६७०, चूरू६२१, हिसार- ५४०, दिल्ली- ६६२, जयपुर- ८३०, सरदारशहर- ५३३, लाडनूं२७५, गंगाशहर-२२६, लुधियाना : १२५०, लाडनूं - ११६०, नई दिल्ली- १००४, राणावास - १२८०, बालोतरा - १३५०, जोधपुर-१००८, आमेर - १०८०, लाडनूं१००, नई दिल्ली - ५४५, श्रीडूंगरगढ़-१००, लाडनूं - ३३५, पाली-५०७, लाडनूं५१०, जयपुर- २४५, शेष यात्रा - ६२४ कि. मी. कुल ५४५७० किलोमीटर । खण्ड १७, अंक २ (जुलाई-सितम्बर, ६१ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only १ www.jainelibrary.org

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