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मधुकणिकाएं
दृष्टांत - शतक री जोड़
मुनिश्री जीवोजी
[ संवत् १९०३ का युवाचार्य जय का चातुर्मास मुनि श्री हेमराजजी के साथ नाथद्वारा में था । कुल १२ साधु थे । इस चातुर्मास में कार्तिक सुदी १३ के दिन मुनि हेमराजजी ने युवाचार्य जय को तेरापंथ के प्रथम आचार्य भिक्षु के जीवन के ३१२ सरस प्रसंग लिखाए । युवाचार्य जय ने उन्हें संपादित कर ग्रन्थ रूप प्रदान किया । प्रकाशित होने पर विद्वानों ने इसका स्वागत किया ।
इन प्रसंगों का ऐतिहासिक और साहित्यिक महत्त्व है । १९ वीं सदी ईसवी के पूर्वार्द्ध में जैन धर्म की स्थिति, साधु श्रावकों की जीवन-दशा और उनके आचार-विचारों की जानकारी तो इनमें है ही; किन्तु इतनी सरसता और रोचकता है कि वे सभी सुपाठ्य और हृदयग्राही बन गए हैं। इनमें न तो दार्शनिक उलझन है और न बनावटी भाषा या अभिव्यक्ति का भंझट । सीधीसादी सरल भाषा में गहन गुत्थियों को सुलझाया गया है; इसलिये ये सुन्दर विचार, सूक्ति और दृष्टांतों के आधार पर सबके लिए उपयोगी हैं और भाषा की दृष्टि से भी १९वीं सदी पूर्वार्द्ध में राजस्थानी की उल्लेखनीय कृति बन गए हैं ।
सन् १६६० में इनका प्रथम प्रकाशन 'भिक्खु दृष्टांत' नाम से हुआ । उस प्रकाशन के साथ श्रीचंद रामपुरिया ने राजस्थानी भाषा में उनकी सूची बनाकर प्रकाशित कर दी। इससे दृष्टांतों के विषय और आचार्य भिक्षु के जीवन-प्रसंगों का सम्यक् बोध हो जाता है ।
उक्त पुस्तक का नवीन संस्करण सन् १९८७ में 'जयाचार्य निर्वाणशताब्दी' के उपलक्ष में जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाशित किया गया । उसके आरंभ में युवाचार्यश्री महाप्रज्ञ द्वारा विषय सूची को नया स्वरूप प्रदान किया गया। इससे विषयों का एक अन्य दृष्टि से सम्यक् बोध होता है ।
उक्त दोनों सूचियों से पूर्व आचार्यश्री भिक्षु के सभी ३१२ रोचक प्रसंगों की एक सूची - 'दृष्टांत शतक री जोड़' नाम से मुनिश्री जीवोजी ने तैयार की थी जो विषय अनुक्रम से पद्यबद्ध है । यह सूची गेय होने से स्मर्तव्य भी है । जीवजी अपने युग के एक विशिष्ट साहित्यिक प्रतिभा सम्पन्न संत थे । उनके द्वारा रची गई वह सूची आज तक अप्रकाशित है । हम उसे यहां प्रकाशित कर रहे हैं । - संपादक ]
खण्ड १७, अंक २ (जुलाई-सितम्बर, ९१ )
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