Book Title: Tulsi Prajna 1991 07
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 40
________________ ढाल-१ लय :-कर्मा में लिख्यो रे कजोड़लो रे......। दान रा दृष्टांत किण हि कह्यौ थारा श्रावक एहवा, दाणादिक किण ही नै घाले नहीं जी रे । भिखु दिष्टंत दीधो दश बजाज नो, नव दुकानां में ले गई एक रही जी रे। दिष्टंत सुणो रे भिखु स्वाम नां, भिखु कीधी भरत में नामनाजी रे ॥१॥ पजुषणा में दाणा आटो क्यू न दे, हूं तो हिवड़ां नवोइज ऊठियो जी रे।। समाइ करावे थाने थांरा सतगुरू, देवां रा त्याग करायां धर्म लूटियो जी रे ॥२॥ पडिमाधारी ने दीधां स्यूं फल नीपज, हाथी डूंगर मोटा तो सूजे नहीं जी रे । कीड़ीकुंथुवापहिली तूं किमदेखसी, एक तो मोटीचरचा पहिली किमलहीजी रे ॥३॥ छ कायां नां जीव खवाया स्यूं हुवै, पाप कह्यां भिखु कह्यो पाने लिखो जी रे। पापकहै यो काचोपाणी पावियां. पाणी रो म्हे कदकह्यो थे यूंही वकोजी रे ॥४॥ पाणी छै काया मांहि के बाहिर रह्यो, जी रे प्राणी, ___ आप री भाषा रा आप ही अजाण छ जी रे । पोठ्यापाने कहै थांराधणीरी रांड हुई जी, विकलानें नहीं भाषारी पिछाणछ जी रे ॥५॥ अनेरां ने दीधा पुण्य इसी कहै, एहवो पुण्य परूप्यो आपे बेहूं करां जी रे। रोट्यां रोट्यां थांरी दाणा मांहरा, कहो तो तंतू दाणा बेहूं सम धरां जी रे ॥६॥ म्है देवां तो म्हारां महावत नहीं रहै, महाव्रत भागां पाप क्यू न लागसी जी रे । जिण वायरे गयंद सा गुड़ाविया, तिण में पूणी री गिणत कहो रहै किसी जी रे ॥७॥ थारे वाय रो रोग ए ओषधि करो, मिटे सात भोम सू हेठो पड़यां जी रे । थारे ई वाय दीस अंगे अति घणी, तूं पड़े तो हूं पिण पड़सू नीवड्यां जी रे ।।८।। वायेला ने सीरो कर परूसीयां, जहर घाल्यो दीसे इसी संक वसी जी रे । तूं जीमै तो जीमू नहींतर नेम छ, दोनूंई भेला जीम्यां संक रहै किसी जी रे ॥६॥ थांने असाध जाणी दीयां स्यूं थयो, जहर जाणी किण ही नर मिश्री भखी जी रे। ते किम मरसी जाणपणो चोखो नहीं, पात्र ने दीधां धर्म सिद्धांते लिखी जी रे ॥१०॥ सुध साधां ने अशुद्ध दीधां स्यू हुवै, घर नौ वित्त गमायो व्रत भांजियो जी रे। श्रावक नै अशुद्ध दीयां में धर्म कहै, संत विचेइ श्रावक लूठो बाजियो जी रे ॥११॥ दान देवा रा त्याग करावं पापीया, तिण पापी रे पावां भ्रष्टी लागसी जी रे । समाइ करायां त्याग कराया तुज गुरु, तिण ने वांद्या तूं पिण भ्रष्टी वागसीजी रे ॥१२॥ रोटी वहिरायां कर धोयां विण नहीं सर, म्हारा घर की घर वट क्रिया म्हें सजां जी रे । यांरी खोटी क्रिया थे तजो नहीं, म्हें पिण म्हारी चोखी क्रिया किम तजा जी रे ॥१३॥ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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