Book Title: Tulsi Prajna 1991 07
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 41
________________ धोवण दीधां धोवण मिल नहीं देऊं, भिक्ख भाख तं गाय नै स्यं दिये जी रे। चारो नीरूं गाय पाछो स्यूं दीय, दूध दीये साधू गउ समापिय जी रे ॥१४॥ सावद्य दान में मौन केई इसी कहै, थांरा धणी रो नाम स्यूं पेमो अछ जी रे । क्या नै हुवै पेमो खेमो नेमलो, सागी नाम लियां सं चुप रही प? जी रे ॥१५॥ थांरा श्रावक देई ने पाछो खोस लै, झूठ बोल बादर साह री डीकरी जी रे । अजबूजी रो घाट सहीत घी खोसियो, कीकी वाई सोभजी प्रगट करी जी रे ॥१६॥ हूं भक्तां नै जीमावू म्हांनै स्यूं हुवै, ज्यूं ज्यं गुल गालेगा ज्यूं मीठो हुसी जी रे । थारै तीन तीर्थ खांडो लाडू हुवो, चोगणी रो खाधां जीव हुवै खुसी जी रे ॥१७॥ जिसो देवेगा तिसो मिलेगा परभवे, देव जिसोइज पामै ए तो छ वृथा जी रे । नारी दीधां नारी पाछी पामसी, कर्मापुत्र केवली नी सी कथा जी रे ॥१८॥ रुपियां दीधा धर्म ममता उतरी, इण लेखे तो नारी दीयां में धर्म हुसी जी रे । दुकान मांसू कढायां दुकान ढह पड़ी, संत वच्या भिक्खुजी थया खुसी जी रे ॥१९॥ श्रद्धा रा दृष्टांत काचो पाणी कसाई नै पावियां, श्रावक नै पायां पिण क्रिया सम गिणी जी रे। तेहिज पाणी वेस्या नै पायो वली, थारी मां ने पायां बिहु सरीखी गिणीजी रे ॥२०॥ एकेंद्री मार पंचेंद्री पोख्यां धर्म कहै, थारो अंगोछो खोसी ब्राह्मण नै दियो जी रे । टका भरी लटां ने खवाय नै, मरतो पंचेंद्री पंखी वचावी लियो जी रे ॥२१॥ काचो पाणी पायां मिश्र धर्म कहै , खोस लियां पिण मिश्र धर्म थावसी जी रे।। कबूतरा नै मक्की नाख्यां चुग लियां, अहि बंधाय बचायां इमज थावसी जी रे ॥२२॥ दान दया उठाई झूठ वदै घणा, पोते उठाई तेहनी खबर पड़े नहीं जी रे । सावद्य दान थाप्यां दया उठ गई, दया उथाप्यां दान उथप गयो सही जी रे ॥२३॥ नाहर मंजारी स्वान कसाई चोरटा, हिंसक सर्व मराय वचाइय जी रे । इमहिज खाई गाड्यां खाई लूंटावियां' इमहिज लाय लगाई ने बुजाविय जी रे ॥२४॥ साधू आहार करै सो खोटो काम छ, रुघनाथजी रो जीवणजी वकी रह्यो जी रे।। खोटोकाम करसो के आज करे लियो, वारवार इम पूछ्यां चोखोइज कह्योजी रे ॥२५॥ पोसा में पडिलेहण कीधा स्यूं हुवे, अछाण्यां पाणी पीवण रा सोगन किया जी रे। छाण छाण नै पीधां स्यूं फल पावसी, तस जीवां ने घेर नै गोता दिया जी रे ॥२६॥ एक लाडू विष नो बीजो अमृत नो, ठीक पड्यां विन समझणो खाए नहीं जी रे । साधु असाधु धर्म अधर्म ओलख्यां विना, समझणो तो दोयां नैं टाले सही जी रे ॥२७॥ जीव खवायां परिणाम चोखा कहै, कटारी तूं धूंसी मारयो नर भणी जी रे। कहै अमारा परिणाम चोखा घणा, पारखा कीधी कटारी तीखी घणी जी रे ॥२८॥ १. पाठान्तर-खणावियां । खण्ड १७, अंक २ (जुलाई-सितम्बर, ६१) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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