Book Title: Tulsi Prajna 1991 07
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 19
________________ आदमी बूढ़ा क्यों होता है ? D साध्वी राजीमती वह संसार का सबसे बड़ा धनी व्यक्ति होता है जो स्वस्थ तन और स्वस्थ मन का अधिकारी होता है । सब कुछ पाकर भी मनुष्य सुखानुभूति नहीं कर सकता, यदि उसके पास स्वस्थ मन, सधा हुआ चित्त और शान्त वृतियां नहीं हैं। भारतीय संतों ने इस वास्तविकता की ओर समाज का ध्यान आकर्षित किया है कि जो अपनी भोगवृत्ति पर योग का नियन्त्रण बनाए रखता है, वह सुखपूर्वक योग का जीवन जी सकता है । योग छूटते नहीं किन्तु योगमार्ग निष्कंटक हो जाता है। फलतः उसका समय बढ़ जाता है। शरीर पर बुढ़ापा कब उतरता है-यह उतनी महत्त्वपूर्ण बात नहीं, जितनी महत्ता इस बात की है कि मानसिक स्तर पर आदमी बूढ़ा कब होता है ? शारीरिक बुढ़ापे से बचने के लिए आवश्यक है सन्तुलित भोजन, गहरी नींद, गहरी सांस, दैनिक भ्रमण, व्यायाम तथा नियंत्रित वासनाए। मानसिक बुढ़ापे का मतलब है, कार्य-क्षमताओं का अभाव, चिन्तन-शक्ति का ह्रास और जीवन रस की क्षीणता। दूसरे शब्दों में बुढ़ापे का अर्थ है--निष्क्रियता और जवानी का अर्थ है-सतत गतिशीलता। शारीरिक बुढ़ापा जो शक्ति-क्षय से उत्पन्न होता है उसके समय को कुछ लम्बाया जा सकता है, रोका जा सकता है । तात्पर्य है, आज आने वाला बुढ़ापा दस वर्ष के बाद आए-ऐसी सम्भावनाएं प्रबल की जा सकती हैं । यह हमारे खान-पान, रहन-सहन और विचार-व्यवहार पर निर्भर करने वाली बात है। शुद्ध रहे फेफड़ा, साफ रहे पेट, सौ वर्ष लगे नहीं, काल की चपेट । मानव शरीर बाहर से जितना भिन्न दिखाई देता है, उतना भीतर में नहीं है। अन्दर की मशीनरी करीब-करीब सबकी समान है। शरीर के सन्तुलित विकास, रोग तथा बुढ़ापे से संघर्ष करने के लिए पर्याप्त जीवन रस का होना आवश्यक है। ग्रन्थियों का प्रथम कार्य है हारमोन्स उत्पन्न करना । दूसरा कार्य है उनसे उत्पन्न रसों को रक्त में मिश्रित करना और तीसरा कार्य है सम्पूर्ण शरीर-रचना पर नियंत्रण बनाए रखना। इस प्रकार जवानी और बुढ़ापा दोनों जीवन-रस पर आधारित हैं। जो अपनी ग्रंथियों को ज्यादा थकाते हैं, वे जल्दी बूढे होते हैं । यदि किसी प्रयोग से उन ग्रंथियों का परिवर्तन कर दिया जाये अथवा उन्हें सबल बना दिया जाये तो मनुष्य फिर से युवा बन सकता है। खण्ड १७, अंक २ (जुलाई-सितम्बर, ६१) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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