Book Title: Tulsi Prajna 1991 07 Author(s): Parmeshwar Solanki Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 6
________________ संपादकीय हाथी गुंफा - लेख की दो ओळियां हाथीगुंफा की चट्टान पर लिखे लेख को सर्वप्रथम पादरी स्टालिङ्ग ने ईसवी सन् १८२० में देखा और जेम्स प्रिंसप के लिए मेजर किट्टोने ने उसकी अशुद्ध प्रतिलिपि बनाई । फिर जनरल कविघम द्वारा मि० एच० एच० लोके की प्लास्टर कास्ट प्रतिकृति से सुपाठ्य अक्षरों की प्रतिलिपि तैयार हुई । राजा राजेन्द्रलाल मित्र, डॉ० भगवानलाल इंद्रजी, जी० बहूलर, जे० एफ० फ्लीट, काशीप्रसाद जायसवाल, आर० डी० बनर्जी आदि विद्वानों ने शिलालेख के अपने-अपने ढंग से मूलपाठ तैयार किए। पं० सुखलाल संघवी, स्टेनकोनो, डॉ० बी० एम० बरुआ, डॉ० डी० सी० सरकार आदि ने मूलपाठ में संशोधन सुझाए और यह क्रम आज भी जारी है । यह लेख ढलवां चट्टान के ८४ वर्गफुट क्षेत्र पर १७ ओळियों के रूप में खोदा गया है; किंतु अक्षर पौन इंच से तीन इंच आकार में छोटे-बड़ हैं । लेख के वाक्य और उसमें लिखा एक-एक वर्ष का कार्य विवरण एक दूसरे से पृथक् रखा गया है । दो वाक्यों के बीच दो अक्षर लिखने योग्य स्थान रिक्त छोड़ा गया है और प्रत्येक वर्ष का कार्य विवरण प्रायः नये पैरे की तरह शुरू किया गया है । विराम चिह्न, यदि कोई था तो उसका रूप मिट गया है । वास्तव में अति प्राचीन होने, घिसा-पिट जाने और पत्थर छीजने - तिड़कने के कारण शिलालेख में खोदे गए वाक्य परस्पर मिले हुए अथवा रिक्त स्थानों पर अक्षरों के तदाभास जैसी विभ्रम की स्थिति बन गई है । यही कारण है कि सन् १८२० से आज तक उसके मूलपाठ और अर्थ -संदोहन में मतभेद ना हुआ है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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