Book Title: Tulsi Prajna 1978 10 Author(s): Nathmal Tatia Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 6
________________ सम्पादकीय तुलसी-प्रज्ञा जो जैन विश्वभारती का मुखपत्र है, अब तक वैमासिक पत्रिका थी, जिसमें केवल शोध-लेख ही प्रकाशित किये जाते थे। पर इस अंक से इसे मासिक बनाया जा रहा है । प्रस्तुत अंक युग्मांक के रूप में प्रकाशित किया जा रहा है। इसे सर्वजनोपयोगी बनाने की दृष्टि से इसमें शोध-लेखों के अतिरिक्त रोचक व ज्ञानवर्धक कथाएं, मुक्तक, कविताएं, महापुरुषों की जीवनियां, सूक्तियां, संस्मरण, संस्थापरिचय आदि भी दिए जावेंगे। कथाएं, लेख, कविताए आदि सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और धार्मिक विषयों पर ही आधारित होंगी। साम्प्रदायिक विद्वष या राजनैतिक चर्चाओं को स्थान नहीं दिया जायगा। तुलसी-प्रज्ञा में जैन विश्व भारती के सारे कार्य-कलापों का विवरण रहेगा । जैनधर्म सम्बन्धी गतिविधियों के विवरण भी इसमें प्रकाशित किये जायेंगे, पर उनके जनहितकर पक्षों को अधिक महत्त्व दिया जा सकेगा। भारतीय विद्या से सम्बन्धित सभी क्षेत्रों के महत्त्वपूर्ण समाचार तुलसी-प्रज्ञा में प्रचारित एवं प्रसारित किये जायेंगे। विश्व का अधिकांश शिक्षित समाज जैन धर्म एवं संस्कृति से अपरिचित है । फलस्वरूप टॉयनबी जैसे बहुश्रुत विश्व इतिहासकार द्वारा रचित 'स्टडी ऑफ हिस्ट्री' जैसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ में भगवान महावीर या जैन धर्म का उल्लेख तक नहीं है, यद्यपि उन्होंने हिन्दू एवं बौद्ध संन्यास-जीवन की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। टॉयनबी के समक्ष यदि भगवान बुद्ध के जीवन-वृत्त जैसा भगवान् महावीर का प्रभावक जीवन-वृत्त रहता, तो श्रमण-परम्परा के महावीर जैसे श्रेष्ठ महापुरुष का उल्लेख अवश्य उस ग्रन्थ में रहता। अतः व्यापक रूप से विश्व को जैनधर्म के इतिहास एवं भारतीय संस्कृति में उसके योगदान से परिचित कराना भी हमारा एक महत्वपूर्ण ध्येय रहेगा । एतदर्थ जैन तथा जैनेतर संस्थाओं में जैन धर्म एवं संस्कृति से सम्बन्धित विभिन्न प्रवृत्तियों से जैन समाज को अवगत कराने के साथ-साथ जनेतर पाठकों को जैन-विद्या के विभिन्न पहलुओं से परिचित कराना भी हमारा लक्ष्य रहेगा। जैन विश्वभारती की अन्तश्चेतना के केन्द्र अणुव्रत अनुशास्ता युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी के प्रवचनों को बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय जन-जन के हृदय तक पहुंचाना इस पत्रिका का एक प्रमुख लक्ष्य रहेगा। तुलसी-प्रज्ञा की सारी प्रवृत्तियाँ, व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र के मंगल-पथ पर आगे बढ़ने में सहायक तभी हो सकेंगी, जब शुद्ध धर्म का प्रचार इसके माध्यम से हो सकेगा। तुलसी-प्रज्ञा का प्रतिवर्ष कम से कम एक शोध-विशेषांक प्रकाशित किया जायेगा जिसमें जैन धर्म, साहित्य और संस्कृति पर देश-विदेश के विशिष्ट विद्वानों के लेख रहेंगे। विदेशी विद्वानों द्वारा किये गए एवं किए जा रहे शोध-ग्रन्थों के संक्षिप्त विवरण भी विशेषांक में प्रस्तुत किये जायेंगे। देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में जैन-विद्या पर तैयार किये गये शोध-निबन्धों के संक्षिप्त विवरण समय-समय पर प्रकाशित किये जायेंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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