Book Title: Tulsi Prajna 1978 10
Author(s): Nathmal Tatia
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 15
________________ लख सरल स्वभावी जय चौकी बकसाव। (मगन चरित्र, ढा. 1 गाथा 89 पृ० 17) 3. मुनि श्री ईशरजी और मुनि श्री मयाचंद जी (214) जयाचार्य के अनन्य वैयावृत्य (सेवा) करने वाले और अच्छे कृपा पान संत थे। ऐसा सुना जाता है कि एक बार जयाचार्य ने युवाचार्य मघवा को कहा-मघजी ! यहां बैठे क्या करते हो, पुस्तकें और संतों को लेकर विचरण करो और धर्म-प्रचार करो । मेरे पास में तो मुनि मयाचंद जी और ईशरजी दो ही संत काफी हैं । कहता जय मघजी ! बैठा कांई करो थे। जावो उपकार करो जनपद विचरो थे। म्हारै तो ईसर मयाचन्द दोनें है। ई जोड़ी थकां जरूरत किण री क्यूं है । (मगन चरित्न ढा. 1 गा० 88 पृ० 17) ऐसी अनुश्रुति है कि जयाचार्य रात्रि के समय पर आदि दबवाते तब आप दोनों मुनि कभी-कभी तो प्रहर रात तक वैयावृत्त्य करते । 4. कम्बलों को लकड़ी के डांडों से बांधकर एक डोली सी बना दी जाती है, जिसमें साधु अथवा साध्वी अच्छी तरह बैठ सकें, उसे सुखपाल कहते हैं। साधु-साध्वी इसे अपने हाथ से बनाते हैं और वृद्धावस्था अथवा रुग्णावस्था आदि परिस्थिति विशेष में ही इसका उपयोग करते हैं तथा स्वयं ही अपने कन्धों पर उठाकर एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र को ले जाते हैं। 5. ऐसा सुना जाता है कि जयाचार्य सं0 1936 में सुखपाल से जयपुर पधारे तब उसे उठाने वाले चार संत मयाचन्द जी (214) रामसुखजी (217) छबील जी (230) और ये थे। उन्हें आचार्य श्री द्वारा पक्का पेटिया [विशेष शारीरिक श्रम देने वाले साधओं को समुच्चय से बिना विभाग के यथेष्ट मात्रा में घी, दूध, मिठाई आदि दिया जाता है, वह पक्का पेटिया कहलाता है । ] मिलता था। इस विषय में आचार्य श्री तुलसी ने लिखा है जय जयपुर यात्रा में, सुखपाल उठातो। पक्को पेटियो महामुनि, ईसर पातो।। (मगन चरित्र ढा. 1 गा० 89 पृ० 17) खण्ड ४, अक ३-४ १६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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