Book Title: Tulsi Prajna 1978 10
Author(s): Nathmal Tatia
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 34
________________ भाव लेश्या कृष्णादिक तीन, उदै परिणामीक भाव। किसा कर्म रो उदे निपन छ, आगल सुणोय न्याव ।।15।। मोह कर्म रो उदे निपन छै, असुभ लेश्या त्रिहुं व्याप । पाप कर्म बंधै छै एहथी, सात कर्म सू नहीं बंधे पाप ।।16।। तेज पद्म भाव लेश्या ए, तीन भाव सुविहांण । उदे खयोपशम परिणामिक ए, सातमा तांई पिछाण ।।17।। भाव सुकल लेश्या इम कहिये, च्यार भाव चित्त छाण । उदै खायक खयोपशम जाणो, वलि परिणामिक जांण ॥18॥ द्वादशमा गुणठाणा तांई, सुकल लेश्या जे पाय। उदै खयोपशम परिणामिक छै, खायक भाव न थाय ।।1।। तेरस में गुणठाणे शुकल-लेश्या छै ते कुण भाव । उदै खायक ने परिणामिक छै, निपुण विचारो न्याव ।।20।। प्रश्न-छहों द्रव्य लेश्याएं कौनसा भाव है ? उत्तर- एक पारिणामिक भाव है। प्रश्न-छहों भाव लेश्याएं कौनसा भाव है ? उत्तर- कृष्णादिक तीनों भाव लेश्याओं में दो भाव पाये जाते हैं---औदयिक और पारिणामिक । प्रश्न-उक्त तीनों लेश्याए कौनसे कर्म का उदय-निष्पन्न भाव हैं ? उत्तर--तीनों अशुभ लेश्याए मोह कर्म का उदय-निष्पन्न हैं, क्योंकि इस (मोह कर्म) से पाप कर्म का बंध होता है। शेष सात कर्मों के द्वारा पाप कर्म का बंध नहीं हो सकता। ___ तेजः पद्म भाव लेश्या में तीन भाव पाये जाते हैं:---औदयिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिक । ये सातवें गुणस्थान तक होती हैं। भाव शुक्ल लेश्या में चार भाव हैं---औदयिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिक । बारहवें गुणस्थान तक जो शुक्ल लेश्या पाई जाती है उसमें तीन भाव हैं -- औदयिक, क्षायोपशमिक, और पारिक्षामिक, पर क्षायिक नहीं है। तेरहवें गुणस्थान की शुक्ल लेश्या में तीन भाव है:--- औदयिक, क्षायिक और पारिणामिक । विचक्षण पुरुष इस के न्याय (निर्णय) पर विचार करें। समचे भली भाव लेश्या ए, किसो भाव अवधार । उदे खायक खयोपशम परिणामी, उपशम वरजी च्यार ।।2111 २१८ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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