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जिहां सलेसी तिहां सजोगी, जोग तिहां कही लेश।
जोग लेश्या मैं कांयक फेर छै, जाण राह्य जिण रेस ।।8।। उक्त छहों लेश्याओं का तीनों योगों में कौनसा योग है, इसका न्याय सुनिए । जिनेश्वर देव ने मन, वचन, काया के तीनों योगों को सलेशी कहा है।
उत्तराध्ययन के चौतीसवें अध्ययन में तीन योगों की अगुप्ति (खुलावट) को कृष्ण लेश्या के लक्षण बतलाये हैं । ये जिन (वीतराग) के वचन यथार्थ हैं।
जहां सलेशी वहां सयोगी और जहां सयोगी वहां सलेशी होता है । वास्तव में योग और लेश्या में क्या अंतर है, इसका रहस्य जिन भगवान् ही जान रहे हैं ।
भाव लेश्या छ द्रव्य माहि, कहिये जीव सूचीन ।
आश्रवजीव निर्जरा निर्वद्य (निरवद्य)' नवतत्व माहि तीन ॥सु०॥9 छहों भाव लेश्याओं को छह द्रव्यों में एक-जीव और नव तत्वों में तीन-जीव, आश्रव व निर्जरा (निरवद्य) कहा गया है।
शुभ लेश्या जो आश्रव निर्जरा, तो किसा आश्रव रे मांय । जोग आश्रव में शुभ लेश्या छै, निर्जरा कर्म कट तिण न्याय ।।10।। पून बंधे तिण सू आश्रव, सुभ लेश्या कहि स्वाम।।
शुभ लेस्या सू कर्म कटे छ, तिण सू निर्जरा पदार्थ ताम ॥11॥ शुभ लेश्या (तेज आदिक तीन) जो आश्रव और निर्जरा है तो कौन से आश्रव में है ? शुभ लेश्या योग आश्रव (शुभ योग आश्रव) में है । उससे कर्म कटते हैं, इस दृष्टि से शुभ लेश्या निर्जरा है।
___ उससे (शुभ लेश्या से) पुण्य का बंध होता है, अतः उसे आश्रव कहा है । कर्म निर्जरण की अपेक्षा से उसे शुभ लेश्या कहा है । शुभ लेश्या से कर्म झड़ते हैं, इसलिए शुभ लेश्या निर्जरा पदार्थ में है।
शुभ अशुभ लेश्या ने कर्म लेश्या कही, शुभ अशुभ बंधंत। भली लेश्या ने धर्म लेश्या कही, उत्तराध्येन सिद्धत ।।12।। इण न्याय निर्जरा आश्रव माहि, शुभ लेस्या त्रिहुं पाय।
अध्येन चोतीस में अवलोकी, निपुण विचारो न्याय ।।13।। उत्तराध्ययन सूत्र में शुभ-अशुभ लेश्या को कर्म लेश्या कहा है और उनके द्वारा शभअशुभ कर्मों का बंध होता है । शुभ लेश्या को धर्म लेश्या कहा है, इसलिए निर्जरा और आश्रव में तीनों शुभ लेश्याएं पाई जाती हैं, अर्थात् शुभ लेश्या आश्रव और निर्जरा दोनों हैं। चतुर व्यक्ति को उत्तराध्ययन के चौतीसवें अध्ययन का अवलोकन कर इस भ्याय (निर्णय) पर चिंतन करना चाहिए।
द्रव्य लेश्या छठं किसो भाव छ, परिणामीक पिछांण। भाव लेश्या छहुं किसो भाव छै, सांभलीये सुविहाण ॥1411
खण्ड ४, अंक ३-४
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