Book Title: Tulsi Prajna 1978 10
Author(s): Nathmal Tatia
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 32
________________ ढाल-1 लय-दलाली लालन की..... द्रव्य भाव लेश्या विविध है, सूत्र भगोती मांय । शतक बार में पंचमुद्देशे, निर्मल सुणो तसु न्याय । सुविनीत शिष आण धरे, टाले अविनीतां रो प्रसंग। विनय गुण वृद्धि करै ।।।। भगवतीसत्र के बारहवें शतक के पांचवें उद्देशक में भगवान ने लेश्या दो प्रकार की कहीं है:-द्रव्य लेश्या, भाव लेश्या । उसका आप लोग निर्मल न्याय सुनें। ___ जो सुविनयी शिष्य प्रभु-आज्ञा को शिरोधार्य करता है, अविनयी पुरुषों के संग को छोड़ता है, वह विनय गुण की वृद्धि करता है। द्रव्य लेश्या छहुं अठ फर्शी छ, भाव लेश्या है जीव । छ द्रव्य माहि किसो द्रव्य है, किसो पदार्थ कहीव ॥सु०2।। द्रव्य लेश्या छहं षट् द्रव्य माहि, पुद्गल कहिये ताहि । नव तत्व माहि अजीव पदारथ, पुन पाप बंध नाहि ॥3॥ छहों द्रव्य लेश्याएं आठस्पर्श वाली हैं। छहों भाव लेश्याएं जीव (जीव के परिणाम) हैं। प्रश्न-छह द्रव्य लेश्याएं कौनसा द्रव्य और पदार्थ हैं ? उत्तर-छहों द्रव्य लेश्याएं छह द्रव्यों में एक पुद्गल द्रव्य कहलाती है। नव पदार्थों (तत्त्वों) में एक अजीव पदार्थ है, पर पुण्य, पाप और बंध नहीं है । भाव लेश्या कृष्णादिक तीन,छ द्रव्य माहि जीव । नव तत्व माहि जीव अरू आश्रव, जोग आश्रव कहोव ।।4।। मिथ्यात अव्रत प्रमाद कषाय, ए चिहं लेश्या नाय । जोग आश्रव पिण असुभ जोग में, अशुभ लेश्या तीनू आय ।।5।। छह भाव लेश्याओं में कृष्णादिक तीन लेश्याएं छह द्रव्यों में एक जीव द्रव्य है, नव तत्त्वों में जीव और आश्रव (योग आश्रव) दो हैं। मिथ्यात्व (विपरीत श्रद्धा) अव्रत (अत्याग भाव), प्रमाद (धर्म के प्रति अनुत्साह) कषाय (राग-द्वेषात्मक तप्ति) इन चारों को लेश्या नहीं कहा जाता। उक्त योग आश्रव भी अशुभयोग आश्रव है, उसमें तीनों कृष्णादिक अशुभ लेश्यामों का समावेश होता है । तीनू जोगां में किसो जोग है, सुणियै तेहनों न्याय । मन वचन काया रा जोग त्रिहं, सलेशी कह्या जिणराय ।।6।। उत्तराध्येन अध्येन चोतीस में, त्रिहुं जोगां री अगुप्त । कृष्ण लेश्या ना लखण कहिये, श्री जिन वयण सुसत्य ॥7॥ २१६ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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