Book Title: Tulsi Prajna 1978 10
Author(s): Nathmal Tatia
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 42
________________ अनुप्रास :-पन्द्रहवीं शती के राजशेखर सूरि, मेरुनन्दन उपाध्याय, सोलहवीं के ज्ञानभूष, सत्रहवीं के कुशल लाभ, बनारसीदास, अठारहवीं के भैय्या भगवतीदास और उन्नीसवीं शती के कविवर बुधजन द्वारा अनुप्रासों का सफल प्रयोग उल्लेखनीय है। कविवर भैय्या भगवतीदास द्वारा अनुप्रासों का शास्त्रीय प्रयोग हिन्दी में अनूठा माना जायगा ।। यमक अलंकार का प्रयोग जैन हिन्दी काव्य में आरम्भ से ही हुआ है । पन्द्रहवीं शती के राजशेखर सूरी, सत्रहवीं शती के यशोविजय उपाध्याय, पंडित बनारसीदास, अठारहवीं के जिनरंग सूरि और उन्नीसवीं के कविवर वृन्दावनदास के नाम उल्लेखनीय हैं जिन के काव्यों में यमक अलंकार का सफल प्रयोग हुआ है । वीर रस प्रधान हिन्दी काव्याभिव्यक्ति में जो स्थान महाकवि भूषण को प्राप्त है उसी प्रकार जैन हिन्दी कवियों में भैय्या भगवतीदास अपनी आध्यात्मिक अभिव्यंजना में यमक अलंकार के प्रयोग में सिद्धहस्त रहे हैं । आप यमक अलंकार के चक्रवर्ती माने जाते हैं। दार्शनिक अभिव्यंजना को सरल सुगम बनाने के लिए जैन हिन्दी कवियों द्वारा दृष्टान्त अलंकार को गृहीत किया गया है । सत्रहवीं शती के महाकवि बनारसीदास दृष्टान्त . 1. कटाक कर्म टोरिके छटांक गांठ छोरिक, पटाक पाप मोर के तटाक दे मृषा गई। घटाक चिन्ह जान के भटाक होय आन के, नटाक नृत्य मान के खटाकि ने खरी ठई। घटा । घोर फारिक तटाक बंध टार के, अटाके राम धारि के रटाक राम की जई। गटाक शुद्ध पानको हटाक आन आन को, घटाक आप धान को सटाक एयो बधू लई ।। कुपंथ-सुपंथ पचीसिका, भय्या भगवतीदास 2. एक मतबाले कहें अन्यमतबारे सब, एक मतबारे पर बारे मत सारे हैं। एक पंच तत्त्व वारे एक-एक तत्त्व वारे, एक मत भ्रमवारे एक-एक न्यारे हैं । जैसे मतवारे बके तैसे मतवारे बक, तासौं मतवारे तक बिना मतवारे हैं । शान्ति रस वारे कहें मृतकों निवारे रहे, तेई प्रान प्यारे रहें और सब बारे हैं। ब्रज-बिलास, भैय्या भगवतीदास 3. जैन कवियों के हिन्दी काव्य का काव्य-शास्त्रीय मूल्यांकन, पृष्ठ 94, (थीसिस) -डा. महेन्द्र सागर प्रचंडिया, २२६ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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