________________
चिन्ता और ऊहा शब्द मिलते हैं ! आचारांग सूत्र में तक्का (तर्क) शब्द आया है । इसी प्रकार कठोपनिषद्' और ब्रह्मसूत्र' में भी तर्क शब्द मिलता है । अष्टसहस्री में भी एक श्लोक उपलब्ध होता है, जिसमें तर्क शब्द का प्रयोग किया गया है । वह श्लोक इस प्रकार है -
तर्कोऽप्रतिष्ठः श्रुतयो विभिन्ना नेकोमुनिर्यस्य वचः प्रमाणम् । धर्मस्य तत्वं निहितं गुहायां महाजनो येन गतः स पन्थाः ॥
सूत्र
न्यायदर्शन में तर्क को पृथक् पदार्थ मानकर भी उसे प्रमाण नहीं माना है । न्याय ' में तर्क शब्द के साथ ऊह शब्द का भी प्रयोग किया गया है । न्यायभाष्यकार वात्स्यायन के मत से तर्क न तो प्रमाण है और न अप्रमाण, किन्तु वह प्रमाण का अनुग्राहक होता है । न्यायसूत्र में तर्क का लक्षण इस प्रकार बतलाया गया है
अविज्ञाततत्त्वेऽर्थे कारणोपपत्तितस्तत्त्वज्ञानार्थमू हस्तर्कः
अविज्ञात अर्थ में सयुक्तिक कारणों के द्वारा तत्त्वज्ञान के लिए जो विचार विमर्श किया जाता है वह तर्क है ।
इस प्रकार तर्क के विषय में जनेतर दर्शन और साहित्य में भी किसी न किसी रूप में विचार किया गया है, किन्तु किसी ने भी तर्क को प्रमाण नहीं माना है । यह जैनदर्शन की ही विशेषता है कि उसने तर्क को एक पृथक् प्रमाण के रूप में प्रतिष्ठापित किया है । सर्वप्रथम आचार्य अकलंक ने तर्क को व्याप्ति ग्राहक बतलाकर उसमें प्रामाण्य सिद्ध किया है । तथा हि
21.
प्रमाण साधनोपायः प्रमाणान्तरगोवरः । व्याप्यव्यापकभावोऽयमेकत्रापि विभाव्यते ॥ सत्यप्यन्वय विज्ञाने स तर्कपरिनिष्ठितः । अविनाभावसम्बन्धः साकल्येनावधार्यते ॥
संभवप्रत्ययस्तर्कः प्रत्यक्षानुपलभतः । अन्यथासंभवासिद्धे रनवस्थानुमानतः ॥
व्याप्तिं साध्येन हेतोः स्फुटयति न विना चिन्तयैकत्र दृष्टिः । asaधिगतविषयः
साकल्येनेष
तत्कृतार्थकदेशे ॥ "
1. नैषा तर्केण मतिरपनेया । —कठोपनिषद्, 219
2. तर्काप्रतिष्ठानात् । ब्रह्मसूत्र 211111
3. न्यायसूत्र 111130
4. न्यायविनिश्चय, 21159, 160.
5. प्रमाण संग्रह, 2112.
6. लघीयस्त्रय, कारिका 59.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
तुलसी प्रज्ञा
www.jainelibrary.org