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प्रमाणविषये शुद्धिः कथं नामाप्रमाणतः । प्रमेयान्तरतो मिथ्याज्ञानाच्चतत्प्रसंगतः। सम्यक् तर्कः प्रमाणं स्यात् तयाऽनु ग्राहकत्वतः । प्रमाणस्य यथाध्यक्षमनमानादि चाश्नुते ॥
इस प्रकार तर्क केवल प्रमाण ही नहीं है किन्तु वह प्रत्यक्षादि से भिन्न एक प्रमाण है। क्योंकि तर्क का अन्तर्भाव प्रत्यक्षादि किसी प्रमाण में संभव नहीं है । (तर्क का जो विषय है उसका ग्रहण भी अन्य किसी प्रमाण से संभव नहीं है।) इस तरह यह निर्विवाद रूप से सिद्ध होता है कि तर्क एक पृथक् प्रमाण है। तर्क प्रमाण परोक्ष प्रमाण के पांच भेदों में से एक है । परोक्ष प्रमाण के पाँच भेद हैं-स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क, अनुमान और आगम ।
इस प्रकार इस निबन्ध में परोक्ष प्रमाण के पाँच भेदों में से दो (अनुमान और तर्क) के स्वरूप आदि का संक्षेप में विचार किया गया है। इनका विशेष विचार प्रमेयकमलमार्तण्ड आदि ग्रन्थों से जानना चाहिये।
एक राजा और उसके मन्त्री में विवाद छिड़ गया । मन्त्री का कहना था कि आज तो हर पति अपनी पत्नी की आज्ञा का पालन करता है। राजा ने कहा- नहीं करता है। मन्त्री बोला, तो परीक्षा कर लेनी चाहिए। परीक्षा की तिथि तय हो गई। जो पत्नी भक्त हैं, वे पहले खेमे में आवें । स्वतन्त्र बुद्धि से चलने वाले दूसरे खेमे में आवें। पहला खेमा तुरन्त भर गया । घण्टों बीत जाने पर एक व्यक्ति दूसरे खेमे में आया। राजा ने कहाचलो, एक व्यक्ति तो आया। उससे पूछा गया कि तुम इस खेमे में किस कारण से आए? वह बोला-मेरी पत्नी ने कहा था कि जरा ध्यान रखना; भीडभाड में न फंसना।
जहां यह स्थिति धर्म के क्षेत्र में घटित हो जाती है, जहां मन से अपना स्वामित्व समाप्त हो जाता है, वहाँ धर्म निस्तेज, शक्तिहीन और निष्प्राण बन जाता है।
खण्ड ४, अंक ३-४
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