Book Title: Tulsi Prajna 1978 10
Author(s): Nathmal Tatia
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 16
________________ दोहा सेवक शासन के सजग, थी गुरु भक्ति महान । परिचर्या नव साधु की, करते देकर ध्यान ॥9॥ विश्वासी विनयी बड़े, सेवा-वृत्ति विशेष ।। आचार्यों के उदक का, करते कार्य हमेश ॥10॥ नव दीक्षित कालूगणी, और मगन मंत्रीश । रहे आपके 'साझ' में, धर गुरु आज्ञा शीष' ।।11।। प्रायः गुरुकुल वास का, लिया आपने लाभ । बने अग्रणी शेष में, गये बढ़ाते आब ।।१२।। बीस दिवस का आ गया, अनशन आखिरकार । बढ़ते चढ़ते भाव से, सफल किया अवतार ॥13।। कृष्ण द्वितीया श्रावणी, साल गण्यासी जान । गढ़ सुजान में हो गया, चरमोत्सव मंडान' ।।14।। 6. मुनि श्री ईशरजी के विशिष्ट गुणों का वर्णन निम्नोक्त पद्यों में मिलता है :वलि ईसरदास उदारी लाल, करी सेवा अधिक सुभारी जी। व्यावचियो गुण जश वरतो लाल ॥ __ (जय सुजश, ढा. 61 गा० 12) आचार्य श्री तुलसी के शब्दों में : ईसरजी मुनिवर व्यावचियो गुणग्राही, शासण रो सेवक सद्गुरु तन परछांही। आचार-कुशल है परम विनीत सयाणो, विश्वासपात्र नव दीक्षित रो थिर थाणो।। आचार्या री नित उदक चाकरी करतो, तिम सहज अंग-रक्षक को पद अनुसरतो। पत्नी चांदा वय सोल वरष री स्याणी, पहिला दीक्षित ईसरजी अनुमति आणी ।। खुद च्यार वरष पाछे ली चरण-समाधी, कारण छोटे भाई री करणी शादी। भिक्षु शासण में आछो नाम कमायो, मघवा निज मुख जय-सुयश ग्रंथ में गायो। (मगन चरित्र, ढा. 1 गा० 85 से 87) 7. मुनि मगनलाल जी (294) पहले उनके साझ [भोजन आदि की सुव्यवस्था के लिए एक व्यक्ति की प्रमुखता में मुनि-मंडल] में थे। २०० तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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