________________
आवश्यकता प्रतीत हुई। इसलिए अकलंक ने विशदज्ञान को प्रत्यक्ष कहा है 11 किन्तु आगम में इन्द्रिय और मन की अपेक्षा के बिना आत्मामात्र से उत्पन्न होने वाले ज्ञान को प्रत्यक्ष बतलाया गया है ।
अनुमान में प्रामाण्य
प्रमाण है, आकाश में
चार्वाक दर्शन को छोड़कर अन्य समस्त भारतीय दर्शनों ने माना है । केवल चार्वाक दर्शन ही एक ऐसा दर्शन है जिसने अनुमान में है । चार्वाक का कहना है कि केवल प्रत्यक्ष ही क्योंकि वह अनुमान अप्रमाण है, क्योंकि वह विसंवादी है। मेघ को मान गलत भी हो सकता है । साध्य और साधन में व्याप्ति ग्रहण के नहीं है और व्याप्ति का ग्रहण प्रत्यक्ष से नहीं हो सकता है । क्योंकि वह समीपवर्ती वर्तमान पदार्थ को ही जानता है, जबकि व्याप्तिज्ञान सर्वदेशावच्छेदेन और सर्वकालावच्छेदेन होता है । इसलिए अनुमान प्रमाण नहीं है ।
देखकर वृष्टि का अनुबिना अनुमान संभव
प्रसिद्ध बौद्धदार्शनिक धर्मकीर्ति ने चार्वाक की उक्त मान्यता का सयुक्तिक खण्डन करके चार्वाक के लिए अनुमान प्रमाण की अनिवार्यता सिद्ध की है । धर्मकीर्ति ने कहा हैप्रमाणेतरसामान्य स्थितेरन्यधियो गतेः ।
प्रमाणान्तरसद्भावः प्रतिषेधाच्च कस्यचित् ॥
यहां धर्मकीर्ति ने चार्वाक के लिए स्वभावहेतुजन्य, कार्य हेतुजन्य, और अनुपलब्धिहेतुजन्य अनुमान की अनिवार्यता सिद्ध की है ।
'प्रत्यक्षं प्रमाणमविसंवादित्वात्' तथा 'अनुमानमप्रमाणं विसंवादित्वात्' ऐसा कह कर चार्वाक प्रत्यक्ष में प्रमाणता और अनुमान में अप्रमाणता की सिद्धि तभी कर सकता है जब वह उक्त प्रकार से स्वभावहेतुजन्य अनुमान को स्वीकार करे । इस प्राणी में बुद्धि है, वाक् व्यापार और काय व्यापार की उपलब्धि होने से । यहां कार्य हेतुजन्य अनुमान के बिना दूसरे प्राणी में बुद्धि को सिद्ध नहीं किया जा सकता है । क्योंकि बुद्धि या चैतन्य परोक्ष धर्म हैं । चार्वाक कहता है - परलोक नहीं है, अनुपलब्ध होने से । यहां अनुपलब्धि हेतुजन्य के बिना चार्वाक परलोक का निषेध नहीं कर सकता है । इस प्रकार अनुमान में प्रामाण्य को स्वीकार किये बिना चार्वाक का काम नहीं चल सकता है । अर्थात् चार्वाक को अनुमान में प्रामाण्य मानना अनिवार्य है ।
अनुमान का स्वरूप
मीयतेऽनेन इति मानं ज्ञानम् । अनुपश्चान्मानम् अनुमानम् | यह अनुमान शब्द की व्युत्पत्ति है | साध्य साधन में व्याप्तिग्रहण, सम्बन्धस्मरण और लिङ्गदर्शन के बाद में जो ज्ञान होता है वह अनुमान है । यह अनुमान शब्द का सामान्य अर्थ है जैनदर्शन में अकलंक,
१. प्रत्यक्षं विशदं ज्ञानं मुख्यसांव्यवहारिकम् ।
परोक्षं शेषविज्ञानं प्रमाण इति संग्रहः ॥ लघीयस्त्रय, का० ३
अनुमान को प्रमाण
प्रामाण्य नहीं माना अविसंवादी है, और
खण्ड ४, अंक ३-४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
२०३
www.jainelibrary.org