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इतिहास के स्वणिम पृष्ठों से
मुनि श्री ईशरजी (बीदासर)
(संयम-पर्याय वि० सं० 1930-1979)
मुनि नवरत्नमल
[जैन विश्व भारती के शोध-विभाग के अन्तर्गत तेरापंथ के इतिहास पर गवेषणा कार्य चल रहा है । यह कार्य मुनि श्री नवरत्नमल जी के सान्निध्य में लगभग दो वर्षों से निरन्तर गतिशील है। प्रस्तुत स्तम्भ में 'इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों से' रोचक एवं प्रेरक सामग्री पाठकों की सेवा में प्रकाशित की जा रही है । आशा है, पाठकगण इससे लाभान्वित होंगे। साथ ही, एतद विषयक विशेष जानकारी रखने वाले पाठकों से अपनी सामग्री की सूचना हमें प्रेषित करने का अनुरोध है ।-सं०]
गीतक छन्द प्रथम बीकानेर में फिर वास बीदासर किया।
था वहाँ ननिहाल फिर ससुराल भी तो कर लिया। जाति डागा अमर-नंदन नाम ईशर आपका।
मिला सच्चा धर्म समझा मर्म मानव जन्म का ॥१॥ भव्य आकृति प्रकृति ऋज मृदु वर्ण तन का गौर है।
साधना का तरुण वय में लिया मार्ग कठोर है। धर्मपत्नी आपकी श्रमणी बनी है प्रथम ही। आप पीछे बने साधक विरति की धारा बही ॥२॥
दोहा नियम इतर सम्बन्ध का, फिर भी धर उत्साह । स्त्री को अनुमति दी अहो ! (फिर) ली खुद ने वह राह ॥३।।
1. मुनि श्री ईशरजी बीकानेर के पूंजाणी डागा (ओसवाल) थे। उनके पिता का नाम अमरचंद जी था। उनका ननिहाल बीदासर होने से वे बीदासर रहने लगे एवं विवाह
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तुलसी प्रज्ञा
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