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आरिवरी सवाल: लाओत्से पर बोलते हुए आपने कहा कि जिस पर भरोसा न हो उसके लिए नीति, नियम और पुलिस की व्यवस्था की जाती है, और आपने यह भी कहा कि बुरे आदमी में भी शुभ देवना गरिमा हैं। तो प्रश्न यह उठता है कि यहां आश्रम में सुरक्षा की इतनी कड़ी व्यवस्था क्यों है?
संगठन, संप्रदाय, समृद्धि, समझ और सुरक्षा
बहुत सी बातें समझनी पड़ें; और समझ लेनी उचित हैं।
मेरे लिए तो कोई बुरा नहीं है, कोई शत्रु नहीं है। आश्रम में जो व्यवस्था है वह किसी शत्रु से बचने की व्यवस्था भी नहीं है। तुम्हें ऐसा दिखाई पड़ता होगा, वह तुम्हारी व्याख्या है। आश्रम में जो व्यवस्था है, वह मित्रों से बचने की है। और शत्रुओं से कभी कोई किसी को बचा भी नहीं सका; कैसे बचा सकते हो?
जीसस को सूली लग गई; बारह ही पहरेदार, बारह शिष्य पहरा दे रहे थे। तो अब क्या करोगे? बारह शिष्य क्या करोगे? दुश्मन पांच सौ की भीड़ लेकर आ गया था। सब व्यवस्था तोड़ी जा सकती है।
फिर जीसस तो फकीर थे, लेकिन अमरीका के पास जितनी व्यवस्था है लिंकन को, केनेडी को बचाने की-वे भी नहीं बचा सकते। बचाना तो करीब-करीब असंभव है शत्रु से। कभी नहीं बचा सकते।
गांधी के लिए बचाने के सब उपाय थे। क्या करोगे? एक पागल आदमी खतम कर दे सकता है। जिनसे तुम बचा लेते हो, उनसे बचाने की कोई जरूरत ही नहीं है; क्योंकि वे कोई खतम करने को हैं नहीं। लेकिन जो खतम करना चाहता है, उससे तुम नहीं बचा पाते। अभी ललित नारायण मिश्र की जो मृत्यु हुई, उसमें एक हजार सैनिक चारों तरफ खड़े थे। क्या करोगे? एक पागल आदमी बम फेंक देता है।
शत्रु से बचाने का तो कोई उपाय ही नहीं है। उस भूल में तो कोई कभी पड़े ही नहीं कि कोई शत्रु से कभी किसी को बचा सकता है। उसकी कोई जरूरत भी नहीं है। मेरे लिए कोई शत्रु है भी नहीं। उस दिशा में सोचने का कोई कारण नहीं है।
यह व्यवस्था है मित्रों से बचाने की। मेरी परेशानी मित्रों से है। और परेशानी का कारण मुझे नहीं है, वह भी समझ लेना चाहिए।
वर्षों तक मैं अकेला घूम रहा था सारे मुल्क में। काम करना असंभव हो गया; काम—जिसको करने के लिए इस शरीर में मैं रुका हूं। रात सो रहा हूं, कोई दो बजे रात कमरे में घुस जाता है। वह कहता है, पैर दबाने हैं। वह बड़े भाव वाला आदमी है। वह रात भर पैर ही दबाता रहता है; सोना ही मुश्किल है। रात मैं कुछ और कर रहा हूं, वह भी करना मुश्किल है।
ट्रेन में सवार हूं, चार आदमी ट्रेन में चढ़ आते हैं। वे कमरे में बैठे हैं; वे बातचीत कर रहे हैं। ट्रेन में मुझे इतने लोगों ने बातचीत की कि जब मैं पहुंचूं जहां मुझे बोलना है, तो मेरा गला ही बिठा दिया उन्होंने! ट्रेन में जरा जोर से बोलना पड़ता है। और उन्हें सुविधा मिल गई कि आठ-दस घंटे वे बातचीत में लगाए हुए हैं। उनको मैं कितना ही कहूं कि अब मुझे छोड़ दें, कृपा करें! पर वे प्रेमी हैं, वे कहते हैं, छोड़ने का मन नहीं होता।
यहां भी खुला छोड़ा जा सकता है। मैं वृक्ष के नीचे हो सकता हूं। लेकिन तब, जो मैं कर रहा हूं, वह करना असंभव हो जाएगा। बिलकुल असंभव! और जो मैं कर रहा हूं, उनमें से बहुत सी बातों का तुम्हें कोई खयाल नहीं है।
शंकराचार्य के जीवन में एक उल्लेख है। एक बड़ा महत्वपूर्ण विवाद हुआ मंडन मिश्र के साथ। बड़ा मुश्किल था, किसको खोजें अध्यक्षता के लिए? क्योंकि शंकर और मंडन का विवाद था—दो बड़ी महिमाशाली प्रतिभाएं! खोज मुश्किल थी। लेकिन मंडन की पत्नी एकमात्र दिखाई पड़ती थी, जो अध्यक्ष हो सकती। लेकिन शंकर के अनुयायियों को चिंता थी कि मंडन की पत्नी कहीं पक्षपात न करे! क्योंकि पति एक प्रतियोगी है।
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