Book Title: Tao Upnishad Part 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

Previous | Next

Page 393
________________ वे वही सीरवते हैं जो अबसीखा है लेकिन मन अबुद्धत्व पर तो राजी नहीं होता। और मन यह भी जानता है कि बुद्धत्व का तो दावा कैसे करें। क्योंकि अगर बुद्धत्व का ही दावा करना है तो मेरे पास पूछने क्या आए? बात खतम हो गई। दूसरे तुम्हारे पास पूछने आएंगे। तुम क्यों मेरे पास पूछने आए हो? यह भी नहीं कह सकते कि मैं बुद्ध हो गया हूं। वह तो हुए भी नहीं हैं, अन्यथा कोई जरूरत ही न थी कहीं जाने की। और यह कहने में मन सकुचाता है कि मैं अज्ञानी हूं। . यही खतरा है। जब तक परम ज्ञान न हो जाए तब तक तुम अज्ञान को ही अपनी अवस्था समझना। और इंच भर भी तरकीबें मत निकालना कि हां, कई तरह के अज्ञानी हैं; कुछ मुझसे नीचे हैं। कोई अज्ञानी तुमसे नीचे नहीं है। और तुम किसी अज्ञानी से ऊंचे नहीं हो। अज्ञानी यानी अज्ञानी। कुछ अज्ञानी धन में खोए होंगे; कुछ अज्ञानी धर्म में खोए हैं। किन्हीं ने तिजोरियां भर ली हैं, किन्हीं ने त्याग कर लिया है। किन्हीं के पास सिक्के चांदी के हैं; किन्हीं के पास सिक्के त्याग के हैं। किन्हीं ने उपवास से खाते-बहियों को भर रखे हैं, त्याग-व्रत से, और किन्हीं ने कुछ और कूड़ा-कबाड़ इकट्ठा कर लिया है। कोई बाहर की रोशनी के लिए दीवाने हैं; किन्हीं ने भीतर की रोशनी को पकड़ रखा है। लेकिन सब अज्ञानी हैं; बाहर और भीतर से कोई फर्क नहीं पड़ता। ज्ञान की घड़ी के पहले तक-आखिरी क्षण तक-तुम अपने को अज्ञानी ही समझना। अगर आखिरी क्षण को आने देना हो, जब तक कि तुम मंदिर में बुला ही न लिए जाओ भीतर, तब तक तुम अज्ञानी ही बने रहना, तब तक तुम याचक ही रहना; तब तक तुम भिक्षा-पात्र को फेंक मत.देना; तब तक तुम अपने को विनम्र ही रखना; तब तक जरा भी अहंकार को निर्मित मत होने देना। अगर इस अहंकार को तुम रास्ते पर निर्मित होने दिए तो आखिरी क्षण में यही अहंकार तुम्हें डुबाएगा; यही सांप है जो तुम्हें आखिरी क्षण से लील जाएगा और वापस पहुंचा देगा जहां उसकी पूंछ है। इसे तुम पहले ही क्षण से स्मरण रखना। धर्म को संपदा मत बनाना और अनुभवों को इकट्ठा मत करना। कहना कि सब राह के किनारे की बातें हैं; घटती हैं, सामान्य हैं। उन पर ज्यादा ध्यान मत देना। उनका विचार भी मत करना। उनके साथ अकड़ को मत जोड़ना। अगर तुम पहले से ही होशपूर्वक चले और अंतिम क्षण तक अपने को अज्ञानी ही जाना, तो तुम्हें आखिरी मंजिल के कदम से कोई भी वापस न भेज सकेगा। अब हम लाओत्से के सूत्र को समझने की कोशिश करें। 'जो कर्म करता है, वह बिगाड़ देता है। और जो पकड़ता है, उसकी पकड़ से चीज फिसल जाती है।' ये बड़ी गहन बातें हैं। और ऐसे ही अगर ऊपर-ऊपर से सुनी तो तुम्हारी समझ में न आएंगी। तब ये पहेली जैसी लगेंगी। ये बिलकुल सीधी-साफ हैं; पहेली कुछ भी नहीं है। अगर तुम समझने को बुद्धि से मत जोड़ो तो ये बिलकुल आसान हैं। ये सीधे-सीधे सूत्र हैं। अगर बुद्धि से जोड़ो तो कठिनाई बढ़ जाती है। कोई भी चीज को बुद्धि से जोड़ो, वह पहेली हो जाती है। उसका कारण है। क्योंकि बुद्धि एक-आयामी है। वह एक दिशा में देखती है। अगर वह दक्षिण में देखती है तो दक्षिण की तरफ देखती है। तुमने सुना होगा शिकारियों से कि जंगल में एक खतरनाक जानवर होता है, गेंडा। वह अगर किसी पर हमला करे तो उससे डरने की कोई जरूरत नहीं। जरा सा, जिस तरफ वह आ रहा है, उससे हट कर खड़े हो जाना जरूरी है। क्योंकि वह एक-आयामी है। वह सीधा ही चला जाता है। अगर तुम उसके रास्ते पर न पड़े तो वह देख ही नहीं सकता। उसकी गर्दन नहीं मड़ती, उसकी गर्दन बड़ी मोटी है। बुद्धि की गर्दन भी गेंडे जैसी है; एक-आयामी है। तुम जरा ही बच कर खड़े हो गए तो गेंडा देख ही नहीं सकता। उसके लिए बस एक ही दिशा है, जिस तरफ वह जा रहा है। उसकी दिशा पर जो पड़ जाए बस वही है; बाकी जो उसकी दिशा पर न पड़े वह नहीं है। 383

Loading...

Page Navigation
1 ... 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440