Book Title: Tao Upnishad Part 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 394
________________ ताओ उपनिषद भाग ५ बुद्धि एक-आयामी है; वह एक तरफ जाती है। जैसे, बुद्धि कहती है, अगर किसी चीज को पकड़ना है तो जोर से पकड़ो, नहीं तो छूट जाएगी। बात साफ है कि अगर किसी चीज को पकड़ना है तो जोर से पकड़ो, नहीं तो छूट जाएगी। यह एक आयाम हुआ। इसमें एक विपरीत आयाम भी है, वह बुद्धि को पता नहीं, कि अगर बहुत जोर से पकड़ोगे तो हाथ थक जाएगा। जितने जोर से पकड़ोगे उतने जल्दी थक जाएगा। और जब हाथ थक जाएगा तब छोड़े बिना कोई रास्ता न रह जाएगा। तब तुम्हें छोड़ना ही पड़ेगा। तो लाओत्से बुद्धि से बिलकुल भिन्न आयाम की बात कर रहा है। वह कह रहा है, अगर बहुत जोर से पकड़ा तो छोड़ना पड़ेगा। क्योंकि पकड़ की एक सीमा है।। तुम कभी गौर करो। मुट्ठी बांधो जोर से, और बांधते चले जाओ, बांधते चले जाओ। जितनी तुममें ताकत हो, पूरी लगा दो। तब तुम एक अनूठा अनुभव करोगे; जब सब ताकत चुक जाएगी, तुम पाओगे तुम्हारे बिना कुछ किए मुट्ठी खुल रही है। तुम खोल नहीं रहे, क्योंकि अब तो खोलने की भी ताकत नहीं है। वह भी तुमने बांधने में ही लगा दी थी। कभी करके प्रयोग देखो, कि बांधते जाओ मुट्ठी को, बांधते जाओ; सारी ताकत लगा दो मुट्ठी पर, और जरा भी खुलने का उपाय मत दो। थोड़े ही क्षणों में तुम थक जाओगे, और तुम पाओगे शिथिल होती जा रही है मुट्ठी, अंगुलियां अपने आप खुल गई हैं। अब तुम्हारा कोई वश नहीं। लाओत्से कहता है, 'जो पकड़ता है, उसकी पकड़ से चीज फिसल जाती है।' यही तुम्हारी जिंदगी में चौबीस घंटे हो रहा है। लेकिन वह बुद्धि का गेंडा तुम्हें सुनने नहीं देता। क्योंकि उसके मार्ग पर ये चीजें पड़ती नहीं। उसका तर्क सीधा-साफ है कि जो पकड़ना है, जोर से पकड़ो, नहीं छूट जाएगा। अगर कोई चीज छूट जाती है तो बुद्धि कहती है, देखो, पहले ही कहा था, जोर से पकड़ो, नहीं तो छूट जाएगी। अगर कोई चीज बिगड़ जाती है तो बुद्धि कहती है, पहले ही कहा था, ठीक से करते, कभी न बिगड़ती। और लाओत्से कहता है कि तुम्हें खयाल ही नहीं है कि चीजें अपने आप हो रही हैं। तुम्हारे करने से क्या हो रहा है? तुम करने से बिगाड़ ही सकते हो। और तुमने अगर ज्यादा करने की कोशिश की तो ज्यादा बिगाड़ दोगे। . इसलिए कर्मठ लोगों से ज्यादा उपद्रवी लोग कहीं भी नहीं होते। उनसे तो आलसी भी बेहतर; कम से कम किसी का कुछ बिगाड़ते तो नहीं। कर्मठ आदमी तो सुबह से झंडा लेकर निकलता है, उसको सुधार करना है, संसार बदलना है। किसने तुम्हें कहा कि तुम संसार बदलो? किसने तुम्हें यह अधिकार दिया? तुम स्वयं अपनी नियुक्ति कर लिए हो संसार बदलने के लिए, कि क्रांति करनी है, कि दुनिया भ्रष्ट हो रही है, भ्रष्टाचार मिटाना है। हजारों-हजारों साल करके भी आदमी क्या कर पाया? कौन सी चीज कर पाया है? चीजें अपने स्वभाव से चल रही हैं। तुम्हारे किए कुछ होता है? हां, तुम नाहक परेशान हो लेते हो, बड़ा उछलकूद मचाते हो, पसीना-पसीना हो जाते हो। तुम मुफ्त ही शहीद हो जाते हो। और तुम्हारे उपद्रव के कारण बहुत से लोग जीवन में अड़चन अनुभव करते हैं। वे अपने सीधे मार्ग से जा रहे थे; वे जयप्रकाश के पीछे चलने लगते हैं, भ्रष्टाचार मिटाना है। वे बेचारे अपनी दुकान करने जा रहे थे, कि अपनी पत्नी के लिए दवा लेने जा रहे थे; अब उनको खयाल हो गया कि भ्रष्टाचार मिटाना है। अगर दुनिया से क्रांतिकारी विदा हो जाएं, दुनिया में बड़ी शांति हो जाए। और दुनिया से अगर समाज-सुधारक उठ जाएं तो समाज अपने आप सुधर जाए। मगर बुद्धि कहेगी, यह कैसे हो सकता है? इतना सुधार करके सुधार नहीं हो रहा है, और आप उलटी बात समझा रहे हो! जब इतना सुधार करके सुधार नहीं हो रहा, तो बिना किए कैसे होगा? तुम्हारी हालत वैसी है जैसे छोटा बच्चा एक पौधा लगा देता है; बार-बार निकाल कर देखता है बीज को कि अभी तक अंकुर आया कि नहीं! फिर घड़ी भर बाद पहुंच जाता है। अगर किसी तरह अंकुर निकल भी आया, जो कि 384

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