Book Title: Tao Upnishad Part 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 404
________________ ताओ उपनिषद भाग ५ और जिस दिन तुम कामनारहित हो उस दिन कोई ईश्वर की कामना थोड़े ही करनी पड़ती है! कि मोक्ष की कामना करनी पड़ती है! कामनारहित होना मुक्ति है, कामनारहित हो जाना मोक्ष है। कामनारहित हो जाना ईश्वर हो जाना है। इसलिए ईश्वर की कामना शब्द गलत है, मोक्ष की कामना शब्द गलत है। अब तुम फर्क समझ लोगे। तुम्हारा साधु मोक्ष की कामना कर रहा है। पहले संसार की कामना कर रहा था, अब किसी ने उसकी पूंछ काट दी, अब वह मोक्ष की कामना कर रहा है। लेकिन कामना नहीं कटी, कामना बदल गई। आब्जेक्ट बदल गया, कामना का विषय बदल गया। कल धन चाहते थे, अब आत्मा चाहते हैं। कल यश चाहते थे, अब परमात्मा चाहते हैं। कल साम्राज्य चाहते थे, अब मोक्ष चाहते हैं। लेकिन चाह जारी है। यही असली साधु और नकली साधु का फर्क है। चाह जारी है। धार्मिक रंग हो गया चाह पर, लेकिन चाह जारी है। यह झूठा साधु है। यह जीवन से साधुता को उपलब्ध नहीं हुआ, यह किसी का उपदेश सुन कर साधु हो गया है। किसी ने इसका सिर मुंड़ दिया। यह अपने अनुभव से नहीं आया है। यह किसी की बात में पड़ गया, यह किसी सेल्समैन के चक्कर में आ गया। किसी ने पाठ पढ़ा दिया इसको। और सब तरफ जैसे बाजार में सेल्समैन हैं जो चीजें बेचने की कला जानते हैं, वैसे ही मंदिरों, . मस्जिदों और चर्चों में भी सेल्समैन बैठे हैं। उनका नाम पुरोहित, पंडित, पुजारी; तुम जो चाहो कहो। वे भी वहां धर्म बेच रहे हैं। दुकानें हैं जहां संसार बिकता है; दुकानें हैं जहां धर्म बिकता है। और तुम संसार की दुकानों में भी लूटे जाते हो और धर्म की दुकानों में भी लूटे जाते हो। मैंने सुना है कि दो सेल्समैन आपस में बात कर रहे थे। एक ने कहा, आज मैंने गजब कर दिया। एक आदमी को जमीन बेची थी, और जमीन कोई आठ फीट गड्ढे में थी। मगर मैंने वह बातें की उसको कि जंचा दी; पढ़ा दिया पाठ। जमीन तो उसने खरीद ली। लेकिन दो दिन बाद, संयोग की बात, वर्षा हो गई; और वह पूरा गड्डा पानी से भर गया। वह मेरे पास चिल्लाता-चीखता आया कि इस जमीन का क्या करेंगे? इसमें तो आठ फीट पानी भर आया, यह तो झील हो गई। इसमें कोई मकान बन सकता है? कि खेतीबाड़ी हो सकती है? कि कुछ भी हो सकता है? तो मैंने उसे एक मोटर बोट भी बेच दी। दूसरे ने कहा, यह कुछ भी नहीं। इससे भी बड़ी घटना आज मेरे जीवन में घटी है। एक औरत आई, उसका पति मर गया है। तो मरते वक्त ड्रेस पहनानी पड़ती है एक खास तरह की। मैंने उसको दो जोड़ी ड्रेस बेच दी कि कभी-कभी बदलाहट के लिए भी ठीक रहेगा। वह आदमी मर चुका है। उसको मरघट पहुंचाने के लिए एक पोशाक की जरूरत है। मैंने दो बेच दीं। और उसको जंच गई बात कि यह तो बात ठीक ही है कि एक ही ड्रेस सदा पहने रहना। तो दूसरी ड्रेस भी ताबूत में साथ रख दी। बाजार में लूट है; वहां दुकानदार तुम्हें चीजें बेच रहे हैं। मंदिरों में लूट है; वहां भी दुकानदार तुम्हें परलोक की चीजें बेच रहे हैं। संत तुम्हारी वासना को एक दिशा से दूसरी दिशा में नहीं लगाता। संत तो कहता है कि सभी वासनाएं एक सी हैं, वासना का स्वभाव एक सा है। चाहे तुम धन चाहो, चाहे पुण्य चाहो, वासना की प्रकृति में कोई फर्क नहीं पड़ता। कामना का एक सा ही जाल है। कामना का अर्थ है कि तुम जो हो उससे तृप्त नहीं, कुछ और चाहते हो। संत तो तुम्हें तुम जो हो उससे तृप्त होना सिखाते हैं। वह परितोष, वह कंटेंटमेंट कि तुम जो हो ठीक हो; तुम अपने होने से राजी हो। ऐसा ही क्षण कामनारहित क्षण है। और उसी कामनारहितता में मोक्ष का फूल खिलता है। उसी कामनारहितता में तुम अपने ईश्वरत्व को अनुभव करते हो। उसी कामनारहितता में जीवन की आखिरी घटना घट जाती है। जो न घटे तो तुम रोते रहोगे। दुकानें बदलोगे, मंदिर बदलोगे, इस चर्च से उस चर्च में जाओगे, यह सब फैलाव व्यापार का है। 394

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