Book Title: Tao Upnishad Part 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 410
________________ ताओ उपनिषद भाग ५ और जब भी कोई किसी व्यक्ति को ढांचे में ढालता है, मार डालता है। उसकी आत्मा मर जाती है। आत्मा जीती है स्वातंत्र्य में। उसे खुला आकाश चाहिए। संत तुम्हें सहयोग देगा और सहयोग का खुला आकाश देगा; गंतव्य नहीं देगा। पंख तुम्हारे शक्तिशाली कर देगा। उड़ो तुम। यात्रा तुम्हारी है; मंजिल तुम्हारी है; दिशा तुम्हारी है। शक्ति तुम्हें देगा कि तुम उड़ सको। खुला आकाश तुम्हें देगा, ताकि तुम मुक्ति से उड़ सको। संत और साधु में बड़ा बारीक, नाजुक भेद है। उसको अगर तुम न समझे तो साधु के चक्कर में पड़ जाना सदा आसान है। और संत को पहचानना सदा कठिन है। क्योंकि वह इतना सरल है। तुम असाधारण को देखते हो। साधारण कहीं दिखाई पड़ता है ? विशिष्ट दिखाई पड़ता है। सामान्य कहीं दिखाई पड़ता है? वह तुम्हारी आंख में आता ही नहीं, पकड़ में ही नहीं आता। इसलिए साधु और संत की ठीक-ठीक प्रकृति तुम्हें समझ में आ जाए तो तुम्हारे जीवन में बड़ा सहयोग मिल सकता है। न समझ में आए तो तुम्हें बहुत से सुधारने वाले मिलेंगे जो तुम्हें बिगाड़ कर छोड़ जाएंगे। आज इतना ही। 400

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