Book Title: Tao Upnishad Part 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 419
________________ धर्म की राठ ही उसकी मंजिल है इसीलिए तो जब तुम भोजन करते हो तो तत्क्षण नींद आने लगती है भोजन के बाद। क्योंकि मस्तिष्क जिस शक्ति से काम करता था वह शक्ति भी पेट ने वापस बुला ली। पेट ने कहा कि अभी पचाना जरूरी है। सब चीजें गैर-जरूरी हो जाती हैं, क्योंकि भोजन इतनी बड़ी जरूरत है, उससे जीवन चलता है। पेट सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। जब पेट को जरूरत न हो तब वह शक्ति देता है, कहीं भी उसका उपयोग कर लो। लेकिन जब पेट को जरूरत है तब सब तरफ से शक्ति को खींच लेता है। इसीलिए तो भोजन करने के बाद मन होता है कि थोड़ा लेट जाएं। क्यों ऐसा मन होता है? क्योंकि पेट ने सब शक्ति खींच ली; हाथ-पैर ढीले हो गए। खाने के बाद तुम ठीक से सोच नहीं सकते; नींद आती है। विद्यार्थी जानते हैं परीक्षा के दिनों में कि अगर पढ़ना हो तो खाना मत खाओ। चाय पी लो, कुछ भी और कर लो, लेकिन भोजन मत डालो शरीर में ज्यादा। तो ही पढ़ पाओगे। क्योंकि मस्तिष्क को तभी शक्ति मिलती है जब शरीर का पचाने का काम बंद रहता है।। बीमारी में कोई जानवर खाना नहीं खाता, सिर्फ आदमी को छोड़ कर। बीमारी में सभी जानवर उपवास करते हैं, सिर्फ आदमी को छोड़ कर। और स्वस्थ दशा में कोई जानवर कभी उपवास नहीं करता, सिर्फ आदमी को छोड़ कर। तुम आदमी से ज्यादा पागल जानवर न खोज सकोगे। स्वस्थ हालत में उपवास उतना ही गलत है जितना अस्वस्थ हालत में भोजन। जब तुम स्वस्थ हो तब तो भोजन की जरूरत है; तब अगर तुम शरीर को तड़पाओगे तो नुकसान कर रहे हो। जब तुम अस्वस्थ हो तब भोजन की जरूरत नहीं है। लेकिन लोग नियम से चलते हैं। जैन हैं; उनका पर्युषण आ गया। अब ये पर्युषण तो बंधे हुए दिन हैं; हर वर्ष भादों में आ जाते हैं। अब दस दिन का उपवास चलेगा। हो सकता है, लाख आदमी उपवास करें तो दो-चार को शायद ये दिन ठीक पड़ें, संयोगवशात इन दिनों में ही उनकी हालत उपवास के योग्य हो। लेकिन बाकी जो लाख करेंगे, वे तो कष्ट में पड़ेंगे। अपना पर्युषण तुम्हें खोजना पड़ेगा। साल में कभी जब तुम्हारी स्थिति उपवास के योग्य हो तब तुम्हारा पर्युषण है। कोई दिन बांधे नहीं हो सकते। और हर आदमी के लिए एक ही नियम नहीं हो सकता। छोटे-छोटे बच्चे तक जोश में आ जाते हैं, पर्युषण के दिन में उपवास कर लेते हैं। क्योंकि उनको बड़ी प्रशंसा मिलती है। सब कहते हैं, कितना गजब का बच्चा है, अभी इतनी उम्र और उपवास कर रहा है! बड़े-बड़े नहीं कर पा रहे, और यह कर रहा है! इसी बकवास में बच्चा बुद्धू बन जाता है; अकड़ में कर जाता है। . अब बच्चे को उपवास की बिलकुल ज़रूरत नहीं है; बूढ़ों को जरूरत हो सकती है। बच्चे को उपवास तो घातक हो सकता है। दस दिन भोजन न देने का मतलब बच्चे के मस्तिष्क में कुछ तंतु सदा के लिए टूट सकते हैं, जिनको वह फिर कभी पूरा नहीं कर पाएगा। लेकिन उनका हिसाब कौन रखे? और कौन समझाए नासमझों को कि तुम क्या कर रहे हो? बच्चे को तो बिलकुल उपवास की जरूरत नहीं है। बूढ़े कर लें, चलेगा। जीवन को प्रतिपल जीना है। तुम मुझसे अगर कुछ सीखो तो इतना ही सीखना कि जीवन को प्रतिपल जीना है और प्रतिपल देखना है। और उसी पल से तुम्हारे जीवन का अनुशासन निकले। और वह अनुशासन उसी पल के लिए हो; अगले पल के लिए तुम कसम मत खाना। क्योंकि कौन जानता है कल क्या होगा? कल के लिए उपवास आज मत लेना। कल परिस्थिति हो, तब देखेंगे। कसम खाकर बंधना मत। अगर आज सुबह तुम्हें ऐसा लगता हो कि भोजन नहीं करना है, तो मत करना। लेकिन सांझ तक लगने लगे कि करना है, तो करना। आधी रात तक लगने लगे कि करना है, तो करना। नियम का कोई सवाल नहीं है। शरीर की स्थिति, मन की स्थिति, जीवन की स्थिति, इनको देखते-देखते-देखते तुम एक चीज पा लोगे, वह कसौटी है जिस पर सब सोना कसा जाता है। वह कसौटी होश की है। 409

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