Book Title: Tao Upnishad Part 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 420
________________ ताओ उपनिषद भाग ५ तो मैं तुम्हें नहीं बता सकता कि तुम्हारा मध्य क्या है। मैं तुम्हें बता सकता हूं कि मध्य को कैसे खोजो। मैं तुम्हें बता सकता हूं कि यह कसौटी है, इस पर कस लेना। मध्य की अवस्था बड़ी शांत, आनंद, प्रफुल्लता की अवस्था है। वहां कोई तनाव नहीं होता। शरीर को जितनी जरूरत होती है उतना तुम दे देते हो; शरीर तृप्त हो जाता है। ज्यादा भर देते हो, अशांति हो जाती है। कम देते हो, पीड़ा बनी रहती है। भोजन करते वक्त वह बिंदु देखना जहां-वह बिंदु बारीक है; अगर बहुत होश रखोगे तो तुम्हें मिल जाएगा-जहां तुम पाओगे, शरीर न तो भर गया ज्यादा और न खाली है, जहां तुम पाओगे कि तृप्ति का बिंदु आ गया, वहीं रुक जाना। रोज-रोज यह बिंदु अलग-अलग होगा, क्योंकि रोज स्थिति अलग होगी। तो मैं तुम्हें बताता हूं कि बिंदु की परिभाषा क्या है। और यही मैं तुमसे पूरे जीवन के लिए कहता हूं। आज हो सकता है ध्यान की घंटे भर जरूरत हो, कल दो घंटा जरूरत हो। आज हो सकता है ध्यान की सुबह जरूरत हो, कल सांझ जरूरत हो। तुम जरूरत से जीना। बंधी लकीरों की क्या जरूरत है? क्योंकि लोगों ने तय कर लिया है कि रोज सुबह ध्यान करना है एक घंटा। अब यह भी हो सकता है कि सुबह जब तुम उठे लब चित्त इतना प्रसन्न है, इतना आनंदित है कि ध्यान करने की प्रक्रिया में ही यह आनंद और चित्त की प्रसन्नता खो जाएगी। जब चित्त आनंदित ही है तो ध्यान क्यों करना? ध्यान तो हो ही रहा है। इस क्षण उत्सव कर लो। इस क्षण नाच लो बाहर जाकर सूरज की खुली रोशनी में। पक्षियों के साथ गीत गा लो, गुनगुना लो। वृक्षों से थोड़ा तालमेल कर लो। मन इतना आनंदित है, अब यह ध्यान करने किसलिए बैठे हो? ध्यान तो इलाज है; जब मन अशांत हो तब बैठना। जब मन रुग्ण हो तब औषधि को खोजना। लेकिन तुमने कसम खा ली कि ध्यान रोज करेंगे। और गुरु हैं पूरे मुल्क में बैठे जगह-जगह जो कहते हैं, नियम से एक ही समय रोज ध्यान करना। ध्यान कोई नियम है? ध्यान तो संतुलन जमाने की प्रक्रिया है। जब चित्त असंतुलित हो, तब जमाना; जब चित्त क्रोधित हो, अशांत हो, तनाव से भरा हो, तब हजार काम छोड़ कर द्वार बंद करके ध्यान करना। क्योंकि इस समय इलाज की जरूरत है। ध्यान औषधि है। प्यास जब लगे तब पानी पीना। नियम से क्यों पानी पी रहे हो? प्यास लगी नहीं है, लेकिन नियम है कि पानी पीना है तो पी रहे हैं। ध्यान भी जब तुम्हें प्यास लगे—जब चित्त अशांत है तो प्यास की खबर आ रही है—तब तुम ध्यान करना। और कभी यह होगा कि घड़ी भर में ध्यान हो जाएगा, कभी दो घड़ी में होगा, कभी तीन घड़ी लग जाएंगी। निर्भर होगा कि बीमारी कितनी गहरी है, उतनी देर तक औषधि का उपयोग करना पड़ेगा। कभी संतुलन क्षण में सम्हल जाता है; कभी तुम बैठते नहीं हो ध्यान में और क्षण में ज्योति जग जाती है; कभी घड़ी लग जाती है। लेकिन अगर तुमने नियम बना लिया कि बस इतनी देर करना है तो तुम व्यर्थ ही चूकोगे। कभी संयोग से ठीक पड़ेगा, अन्यथा अधिकतर तुम खोओगे। निन्यानबे दिन बेकार जाएंगे; कभी एक दिन संयोगवशात ठीक होगा। तो मैं तुम्हें कोई बंधी लकीर नहीं देता; मैं तुम्हें सिर्फ बोध देता हूं कि तुम देखना कब जरूरत है। जब जरूरत हो तब हजार काम छोड़ देना। ध्यान सबसे बड़ी चीज है, सबसे बड़ा भोजन है। एक बार शरीर भूखा रह जाए, कोई हर्ज नहीं; आत्मा को भूखा मत रखना। ध्यान आत्मा का भोजन है। लेकिन जब भूख लगी हो, तभी भोजन का मजा है। अब यही तकलीफ है। जिन्होंने ध्यान किया है सच में, वे कहते हैं, बड़ा आनंद आता है। जिन्होंने भूख लगने पर खाना खाया है, उनके स्वाद का मजा और। अब तुम ऐसे ही भरे जाते हो। तुमने शरीर को थैली समझा है कि उसमें डालते जाओ। तुम्हें स्वाद नहीं आता। जब तुम सुनते हो किसी की बात कि भोजन में अदभुत स्वाद है, तुम्हें भरोसा नहीं आता। जब कोई ऋषि कहता है, अन्न ब्रह्म है, तुम्हें क्या खाक भरोसा आएगा? क्योंकि तुमने कभी 410

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