Book Title: Tao Upnishad Part 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

Previous | Next

Page 407
________________ वे वही सीखते हैं जो अबसीनचा है पार करना ही होगा! क्यों? चांद पर पहुंचना ही होगा! क्यों? मंगल पर पहुंचना ही होगा! क्यों? क्योंकि मंगल है, और चुनौती है। यह तर्क उतना ही बचकाना है कि एक छोटे बच्चे की मां उससे पूछ रही थी कि तूने स्कूल में उस लड़की के मुंह में मिट्टी क्यों फेंकी? तुझसे ऐसी आशा नहीं है। उसने कहा, मैं क्या करूं, उसका मुंह खुला था। तुम्हारे एवरेस्ट और चांद पर पहुंचने वाले लोग बस इतनी ही बुद्धि के हैं। चांद है, इसलिए पहुंचना पड़ेगा। अब इसमें कोई वश ही नहीं है। एक अदम्य आकर्षण है जो किसी ने नहीं किया वह मैं करके दिखा दूं। कठिन में अहंकार को तृप्ति है। सरल में अहंकार कभी उत्सुक नहीं होता। झेन फकीर बोकोजू ने कहा है। कोई ने पूछा कि क्या हुआ तुम्हारे निर्वाण से? तो उसने कहा, क्या हुआ? लकड़ी काटता हूं, आश्रम में लाता हूं; पानी भरता हूं कुएं से, रोटी बनाता हूं। और तो कुछ भी नहीं हुआ। इसमें क्या तुम्हें आकर्षण होगा! लकड़ी काटना, पानी भरना, ऐसी सरल बात निर्वाण में? बस यही हुआ? लेकिन तुम चूक जाओगे। यह बोकोजू संत है जिसकी चर्चा लाओत्से कर रहा है। यह कह रहा है, जीवन सरल हो गया। भूख लगती है, रोटी बनाते हैं; ठंड लगती है, जंगल से लकड़ी काट लाते हैं; प्यास लगती है, कुएं से पानी भरते हैं। ऐसा सरल हो गया। अब कोई जटिलता न रही। लेकिन कुएं से पानी भरने में कौन पूजा देगा? सभी लोग भर रहे हैं। तुम कहोगे, इसमें क्या सार है! लकड़ी सभी काट रहे हैं। इसमें क्या सार है! फिर संसारी और इस बोकोजू में फर्क क्या है? फर्क बड़ा गहरा है। संसार के लोग इन साधारण चीजों को बेमन से कर रहे हैं, क्योंकि उनका रस तो असाधारण को करने में है। तुम बाजार जाते हो; दुकान पर बैठ कर अच्छा नहीं लगता। तुम यह मत सोचना कि तुम दुकान से मुक्त हो गए हो। तुम कोई बड़ी दुकान चाहते हो। ये छोटे-मोटे काम तुम जैसे बड़े आदमी को शोभा नहीं देते। बैठे हैं, कपड़ा सी रहे हैं, या कपड़ा बुन रहे हैं। तुम जैसा बड़ा आदमी और ऐसे छोटे-छोटे काम में लगा है; लकड़ी काटे, पानी भरे, तुम्हें शोभा नहीं देते। तुम्हें तो शोभा देता है, बनारस में कांटों की सेज पर लेटे हैं। तुम्हें कुछ विशिष्ट होना तुम्हारा आकर्षण है। एक दूसरे झेन फकीर दोजो से किसी ने पूछा कि तुम करते क्या हो अब जब कि तुम ज्ञान को उपलब्ध हो गए? .उसने कहा, जब नींद आती है, सो जाते हैं; जब प्यास लगती है, पानी पी लेते हैं। और तो कुछ करने को है नहीं। इन संतों को तुम न समझ पाओगे। क्योंकि ये तुम्हारे करने के जगत में, जहां असंभव को आकर्षण माना जाता है, जहां कठिन की पूजा होती है, उसके बिलकुल बाहर हैं। ये किसी दूसरे ही मूल्य के इंद्रधनुष पर जीते हैं। तुम्हारे मूल्य के इंद्रधनुष से इनका कोई संबंध नहीं। तुम्हारे मूल्य की पटरी से इनका कोई लेना-देना नहीं। तुम इनको पहचान ही न पाओगे। सच्चा संत तुम्हें रास्ते पर मिले तो पहले तो तुम्हें दिखाई ही न पड़ेगा। दिखाई भी पड़ जाए तो तुम पहचान न सकोगे। कोई तुम्हें कह भी दे तो तुम भरोसा न ला सकोगे। क्योंकि इसमें कुछ खास तो दिखाई नहीं पड़ता। खास का संतत्व से कुछ संबंध नहीं है। अति साधारण हो रहने में ही संतत्व की असाधारणता है। 'कठिनता से प्राप्त होने वाली चीजों को संत मूल्य नहीं देते। वे वही सीखते हैं जो अनसीखा हो।' तुम्हारे भीतर अनसीखा क्या है? वही सीखने योग्य है। तुम्हारे भीतर अनसीखा वही है जो तुम लेकर आए : स्वभाव। शेष सब तो तुम्हें सिखाया है समाज ने, परिवार ने, माता-पिता ने, गुरुजनों ने। तुम, जो-जो तुम्हें सिखाया गया है, उसे हटाओ। और जो-जो तुम्हारे भीतर अनसीखा है, जो तुम लाए थे जन्म के साथ, उसे उघाड़ो। वह अनसीखा ही सीखने योग्य है। क्योंकि वही तुम्हारी आत्मा है, वही तुम्हारा स्वभाव है। 'वे वही सीखते हैं जो अनसीखा हो।' वे स्वभाव को सीखते हैं। संस्कृति से उनका कोई लेना-देना नहीं। संस्कृति दूसरों की सिखाई हुई है। नैतिकता 397

Loading...

Page Navigation
1 ... 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440