Book Title: Tao Upnishad Part 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 397
________________ वे वही सीरवते हैं जो अनसीनचा है लाओत्से कहता है, 'जो कर्म करता है, वह बिगाड़ देता है।' जिस बाप ने सोचा कि बेटे को सुधारना है, उसने बिगाड़ा। अच्छे बाप अनिवार्य रूप से बुरे बेटे के जन्मदाता हो जाते हैं। जिस पत्नी ने सोचा कि सुधारना है, कि संबंध नष्ट हुआ, कलह शुरू हुई। जिस समाज ने सोचा कि सुधारना है; यह करना है, वह करना है; जिस समाज में भी सुधारक और क्रांतिकारी पैदा हो गए वही समाज बरबाद हो गया। दुनिया अपने से चलती है। यह नदी अपने से बहती है। तुम किनारे बैठ रहो। तुम जितना मौज ले सको, ले लो। और अगर कर्ता का भाव चला जाए, तो पत्नी जब क्रुद्ध होगी तब भी नाटक देखने में तुम मजा ले सकते हो। क्योंकि जब अपने हाथ में ही कुछ नहीं तो यह भाव-भंगिमा भी प्यारी है। परमात्मा करवा रहा है, देखो कि भली-चंगी स्त्री, बुद्धिमान, बर्तन तोड़ रही है। यह खेल देखो, कि गीता-रामायण का अर्थ करके बता देती है, ज्ञान में कमी नहीं है, विश्वविद्यालय की उपाधि लिए बैठी है, और कैसा कृत्य कर रही है! जब ऐसा हो, ऊपर देख कर उसको धन्यवाद देना कि खूब मदारी है तू भी! भले-चंगे लोगों से क्या-क्या करवा लेता है। जब पति शराब पीकर घर आ जाए, ऊधम करने लगे, तब पत्नी को कहना चाहिए कि ऐसा बुद्धिमान आदमी है, जिसको कोई नहीं चला सकता, जिसको कोई धोखा नहीं दे सकता, वह खुद को अपने को धोखा देता है। ऊपर देख कर परमात्मा को धन्यवाद देना कि खूब खेल दिखाया। जरूर तेरा कोई राज होगा। और हम क्या कर सकते हैं? तूने ही पिलाई है, अन्यथा यह घटता ही क्यों? जैसे-जैसे समझ बढ़ती है वैसे-वैसे लगता है, वही एक कर्ता है। और तब सब अहंकार लीन हो जाते हैं। और इस अहंकार-लीनता का ही यह सारा उपाय है अलग-अलग दिशाओं से। ज्ञानी बस एक ही चेष्टा कर रहे हैं कि तुम्हारा अहंकार कैसे गल जाए, तुम कैसे मिट जाओ। तब फिर सब स्वीकार है-बाहर भी, भीतर भी।। ऐसा भी नहीं कि तुम बाहर ही स्वीकार करोगे। यहीं तो लाओत्से की कीमिया बड़ी अदभुत है। लाओत्से कोई साधारण साधु नहीं है। लाओत्से कोई साधारण चरित्रवान नैतिक पुरुष नहीं है; कोई पंडित-पुरोहित नहीं है कि लोगों को चरित्र सिखा रहा है। लाओत्से तो लोगों को जीवन की परम दिशा दे रहा है, जहां चरित्र-दुश्चरित्र किसी चीज का • कोई मूल्य नहीं है। लाओत्से कहता है, न तो दूसरे के साथ छेड़खान करना; दूसरे को छोड़ दो उस पर, बीच में बाधा मत डालो। और यही लाओत्से अपने लिए भी कहता है कि अपने साथ भी बहुत छेड़खान मत करो। क्रोध है; इसको हटाना है। कौन हो तुम हटाने वाले? कि कामवासना है, इसे मिटाना है। कौन हो तुम मिटाने वाले? कामवासना से ही पैदा हुए हो; रोएं-रोएं-मैं कामवासना भरी है। कौन हो तुम मिटाने वाले? कैसे तुम ब्रह्मचर्य को लाओगे? क्या करोगे? नहीं, अड़चन में पड़ जाओगे। व्यर्थ ही अपने साथ लड़ने लगोगे। और जीवन के जो क्षण उत्सव के हो सकते थे वे अपने ही साथ कलह में बीत जाएंगे। स्वीकार कर लो। और यह स्वीकार आत्यंतिक और परम है। न निंदा करो, न प्रशंसा करो। जैसे हो राजी रहो। और दूसरे के लिए भी। जैसा हो होने का मौका दो दूसरे को। उसे कहो, तू तेरी यात्रा पर है; जो तुझे ठीक लगे, तू कर। जो मुझे ठीक लग रहा है, वह मुझसे हो रहा है। और ठीक और गैर-ठीक लगने का भी क्या सवाल है? जो हो रहा है, वह हो रहा है। जो नहीं हो रहा, वह नहीं हो रहा। तब कैसी अशांति होगी? जब जो हो रहा है, वह हो रहा है, ऐसा भाव बैठ गया, तथाता आ गई, तब फिर कैसी अशांति? कैसी बेचैनी? और यह भी सब अहंकार का खेल है। अहंकार कहता है कि अच्छे कपड़े पहन कर जाओ, अच्छा चरित्र पहन कर रहो। अहंकार कहता है, तुम इतने बड़े कुल में पैदा हुए, और शराब पीते हो? अहंकार कहता है, तुम्हें यह शोभा नहीं देता, तुम तो मंदिर में ही जंचते हो। कि तुम ऐसे बड़े घर में पैदा हुए, और कामवासना से लिप्त हो? तुम्हें 387

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