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स्नण गुण से बड़ी कोई शक्ति बहीं
तो अगर गड्डा बनना हो तो नीचे से नीचे हो रहना। मगर मन उलटा ही समझता है। मन उलटा ही मार्ग दिखाता है। और मन तुमसे जो-जो करने को कहता है वह इतना तर्कयुक्त है कि उसमें छिपा हुआ भ्रांति का, भूल का, अज्ञान का मूल स्वर दिखाई नहीं पड़ता। और मन का गणित विरोधाभासी नहीं है। मन कहता है, ऊपर होना हो तो ऊपर चढ़ो। ऊपर होना हो तो नीचे जाना, यह कौन सी बुद्धिमानी है? ऊपर जाना हो, सीढ़ी लगाओ। धन पाना हो; राजमहलों में है। यश-कीर्ति पानी हो; पदों में, प्रतिष्ठा में है।
और मन का गणित बिलकुल सीधा साफ-सुथरा है। बात जंचती है। धन पाना हो तो धन पाओ, यश पाना हो तो यश पाओ, बचना हो तो बचाओ। ये जीसस, ये बुद्ध, ये लाओत्से, इन सबकी खोपड़ी कुछ उलटी मालूम होती है। मन कहता है, इनकी बातों में फंसे कि उलझ जाओगे, मुश्किल में पड़ जाओगे। ये क्या समझा रहे हैं? ये तो बिलकुल अतयं बातें कर रहे हैं। ये कह रहे हैं, ऊपर जाना हो तो नीचे जाओ। ये कह रहे हैं, बड़ा होना हो तो छोटे हो जाओ। ये कहते हैं, धन पाना हो तो भिखारी हो जाओ। ये कहते हैं, भिक्षा-पात्र में छिपा है सिंहासन, और सिंहासनों में सिवा भिक्षा-पात्रों के कुछ भी नहीं।
साफ है कि हम मन की मान लेते हैं, क्योंकि मन का गणित बहुत साफ मालूम पड़ता है। काश, मन का जो गणित है वही जीवन का भी गणित होता तो तुम हारे हुए न होते, तो तुम्हारे जीवन में कोई पराजय न होती, तो तुम्हारी आंखों में हताशा न होती। तो तुम जीत चुके होते।
लेकिन जीवन मन के गणित से बिलकुल भिन्न है। मन का गणित मनुष्य का गणित है; कितना ही साफ-सुथरा हो, मनुष्य-निर्मित है। जीवन का गणित बिलकुल उलटा है। और जीसस, बुद्ध और लाओत्से ठीक कहते हैं, क्योंकि वे जीवन के गणित को पहचान लिए हैं। वे कहते हैं कि बड़े होना है, अगर सच में ही बड़े होना है, नीचे हो जाओ। ऐसा उन्होंने जाना है होकर। और हम भी उनकी महिमा को देखते हैं; उनसे महिमावान कोई भी नहीं दिखाई पड़ता। सम्राट उनके सामने फीके दिखाई पड़ते हैं। बड़े से बड़े साम्राज्य भी उनके चरण की धूल मालूम पड़ते हैं। यह भी समझ में आता है। इसलिए बिगूचन और बढ़ जाती है, उलझन और बढ़ जाती है। क्या करें?
मन भीतर एक गणित सुझाता है; जीवन का गणित बिलकुल अलग है। मन के गणित को छोड़ देना संन्यास . है। जीवन के गणित को पकड़ लेना संन्यास है। मन के गणित से जाग जाना होश है। जीवन के गणित को पहचान
लेना बुद्धत्व है। और जीवन का गणित बिलकुल विरोधाभासी है, पैराडाक्सिकल है। और तुम्हें भी अपने जीवन में कभी-कभी उसकी झलक मिलती है, क्योंकि तुम भी जीवन से जुड़े हो। मन कुछ भी कहे, तुम भी जीवन में कभी-कभी झलक पाते हो। लेकिन चूंकि मन क्रे गणित को तुमने इतने जोर से पकड़ लिया है, उन झलकों को तुम हटा देते हो; कभी तुम उन पर सोचते नहीं।
कभी तुमने खयाल किया कि जब तुम दूसरे के सामने झुकते हो तो अचानक दूसरा तुम्हारे सामने झुक जाता है। ऐसा अनुभव तुम्हें बिलकुल नहीं आया?
जरूर आया होगा। जब तुम किसी के सामने बिलकुल छोटे हो जाते हो, तभी तुम अचानक पाते हो कि दूसरे के हृदय में तुम्हारे लिए अति सम्मान पैदा हो गया। तुमने जब भी थोड़ी-बहुत अपनी महिमा का स्वर सुना होगा वह विनम्रता में सुना होगा। जब तुम किसी को कुछ देते हो तब तुम्हारे भीतर के धन की कोई सीमा है! और जब भी तुम किसी से कुछ छीन लेते हो तब तुमने खयाल किया कि भीतर तुम कैसे दरिद्र हो जाते हो! यह तुम्हें अनुभव में भी आता है, लेकिन इस अनुभव को तुम कभी विचार नहीं करते।
कभी कुछ देकर देखो किसी को। चीज तो जाती है हाथ से, धन जाता है; लेकिन कुछ और, जो सभी धनों से बड़ा धन है, अचानक तुम्हें भर देता है। दान का वही तो मजा है। इसलिए तो लोग इतना रस लेते हैं कुछ भेंट देने में।
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