Book Title: Tao Upnishad Part 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 376
________________ ताओ उपनिषद भाग ५ परमात्मा के निकट तो वही होता है जिसका दमित कुछ भी नहीं है, जो भीतर बिलकुल खाली है, जिसके अचेतन में कोई रोग नहीं पड़े हैं। वही इस महाविराट उत्सव में सम्मिलित हो पाता है। वही नाच सकता है। उसके ही धूघर बज सकते हैं। उसके ही ओंठों पर बांसुरी आ जाती है अस्तित्व की। उसके ही जीवन में गीत प्रकट होता है। तुम तो डरोगे बांसुरी रखते अपने ओंठों पर, क्योंकि तुम जानते हो, भीतर जहर भरा है, वही निकलेगा; तुम गा न सकोगे। तुम गाली ही दे सकते हो। गीत तुमसे निकलेगा कैसे? गीत की स्थिति नहीं है भीतर निकलने की। तुम प्रेम कैसे करोगे? तुम सिर्फ घृणा ही कर सकते हो। तुम वही कर सकते हो जो तुम्हारे भीतर दबा है। तो तुम्हारा साधु परमात्मा से दूर होता जाता है। जितना दूर होता है उतना वह सोचता है, और जोर से दमन करना है। तब वह अपने भीतर एक नरक को बना लेता है। ___मैं साधुओं को जानता हूं। उन्हें निकट से जान कर ही मुझे यह खयाल आया कि दुनिया को नए संन्यासी की जरूरत है। पुराना संन्यास सड़ चुका है। उसको महा रोग लग गया है दमन का। और पुराना संन्यासी आनंदमग्न नहीं है। भला वह मुस्कुराता भी हो तो भी उसकी मुस्कुराहट झूठी है। क्योंकि एकांत में जब वह मुझे मिला है तो उसने अपना दुख रोया है। सभा में जब. उसे मैंने देखा है तो वहु मुस्कुराता बैठा है। एकांत में वह दुखी है। और एकांत में वह अस्तव्यस्त है, अराजक है। और एकांत में वह समझ नहीं पाता कि क्या हो रहा है। और एकांत में उसकी वही पीड़ाएं हैं जो तुम्हारी हैं। और तुमसे हजार गुनी हैं; क्योंकि तुमने दबाया नहीं है, उसने दबाया है। वह तुमसे बड़ा गृहस्थ है। तुमसे ज्यादा स्त्रियों की आकांक्षा है। तुमसे ज्यादा धन की लोलुपता है। तुमसे ज्यादा उसकी पकड़ है भोग पर। लेकिन उसने दबाया है; वह उसे प्रकट नहीं होने देता। तुमने प्रकट किया है। तुम थोड़े हलके हो। तुम उतने भारी नहीं। तुम शायद परमात्मा के पास पहुंच भी जाओ; तुम्हारा स्वामी, तुम्हारा गुरु, मुश्किल है। इसलिए मुझे लगा कि एक बिलकुल नए संन्यासी के अवतरण की जरूरत है, जो जीवन को दमन के मार्ग से नहीं, वरन होश के मार्ग से रूपांतरित करे। ये जो सूत्र हैं, अब तुम समझने की कोशिश करो। ये होश के सूत्र हैं। क्योंकि बड़ा होश चाहिए, तभी तुम · जीवन की समस्याओं के पैदा होने के पहले उनका निवारण कर पाओगे। 'जो शांत पड़ा है, उसे नियंत्रण में रखना आसान है। जो अभी प्रकट नहीं हुआ है, उसका निवारण आसान है।' निवारण तुम कर ही तब पाओगे जब तुम उसको देखने लगो जो होने वाला है, अभी हुआ भी नहीं है। नहीं तो निवारण न कर पाओगे। जो होने वाला है, जो अभी अस्तित्व में आया नहीं है। भीतर को तुम समझने की कोशिश करो। तुम अगर भीतर का थोड़ा अध्ययन करो तो चीजें बड़ी साफ होने लगें। थोड़ा स्वाध्याय जरूरी है। क्योंकि जो भी मैं कह रहा हूं वह कोई सिद्धांत नहीं है, वह तुम्हारे स्वाध्याय के लिए सूचनाएं हैं। तुम भीतर देखने की कोशिश करो, किस तरह घटना घटती है, एक विचार कैसे निर्मित होता है। खाली बैठ जाओ, देखो कि विचार कैसे निर्मित होता है, कहां से आता है। तो पहले तुम पाओगे कि विचार नहीं होता, भाव होता है। सिर्फ भाव। भाव बड़ा धूमिल होता है; साफ नहीं। कोई चीज जैसे होने वाली है; कोई अंकुर फूटने वाला है; लेकिन साफ नहीं-कहां है, कहां से फूट रहा है, क्या हो रहा है। अभी हृदय में है। अभी फीलिंग, भाव के तल पर है। थोड़ी ही देर में भाव के तल से उठेगा और विचार के तल पर आएगा। तब तुम ज्यादा आसानी से पहचान पाओगे कि क्या है, क्या हो रहा है भीतर। फिर जैसे ही विचार के तल पर आ गया, तब वह जिद्द करेगा कृत्य के तल पर जाने की। ये तीन तल हैं : भाव, विचार, कृत्य। क्रोध पहले भाव में रहेगा; तुम्हें भी साफ नहीं है कि क्या है। फिर विचार बनेगा; तब तुम्हें धीरे-धीरे साफ होगा कि क्या है। अभी दूसरे को बिलकुल साफ नहीं है। फिर वह कृत्य बनेगा। तब दूसरे को पता चलेगा कि क्या है। 366|

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