Book Title: Tao Upnishad Part 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 362
________________ ताओ उपनिषद भाग ५ तुम उलटा कर रहे हो। तुम बारूद तैयार करते हो। तुम बारूद को सुखा कर रखते हो कि जरा कोई चिनगारी फेंक दे कि हो जाए विस्फोट। इसलिए अक्सर तुमने अनुभव किया होगा, बात तो बड़ी छोटी थी, विस्फोट बड़ा भारी हो गया। बात इतनी बड़ी थी ही नहीं। बाद में तुम भी कहते हो, इतनी छोटी बात के लिए इतना बड़ा विस्फोट! छोटी-छोटी बात पर कभी-कभी हत्या हो जाती है। कभी छोटे से मजाक पर हत्या हो जाती है। कभी तुमने हंस दिया और इस पर ऐसी भयंकर दुश्मनी बन जाती है कि जिसका परिणाम भयानक हो जाता है। पूरा महाभारत हुआ एक छोटे से मजाक पर-द्रौपदी हंस दी। कौरव धृतराष्ट्र के बेटे थे। अंधा बाप था। पांडवों ने एक महल बनाया था जिसमें उन्होंने बड़ी कारीगरी की थी। दीवारें ऐसे कांच की बनाई थीं कि दरवाजा मालूम पड़े; दरवाजा इस ढंग से बनाया था कि दीवार मालूम पड़े। बड़ी कुशलता इंजीनियरिंग की थी। फिर कौरवों को निमंत्रण दिया था इस महल को देखने के लिए। वे आए। दुर्योधन टकरा गया; समझ कर दरवाजा दीवार से निकल गया। द्रौपदी हंसी और उसने कहा, अंधे के बेटे हैं, अंधे ही हैं! सारा महाभारत इस वचन पर ठहरा हुआ है। फिर द्रौपदी के वस्त्र अकारण ही नहीं खींचे गए; यही मजाक उसके पीछे कारणभूत है। फिर पांडवों को अकारण ही नहीं सताया गया; यही छोटा सा बीज बड़ा होता गया। फिर इसमें हजार-हजार धाराएं मिल गईं। जो झरने की तरह शुरू हुआ था, वह बड़ी गंगा बन गया। लाओत्से कहता है, या तो पूर्व-निवारण कर लो-सबसे कुशलता तो पूर्व-निवारण की है-अगर यह न हो सके, तो जब कोई गाली दे तभी सजग हो जाओ। क्योंकि बीज पड़ रहा है। लेकिन तुम गाली पर सोचना शुरू कर देते हो। तुम भीतर गाली के साथ प्रतिशोध करना शुरू कर देते हो, प्रतिकार का विचार करने लगते हो। तुम सोचते हो कि हम विचार ही कर रहे हैं, कोई उसको मार तो डालने जा नहीं रहे हैं। लेकिन तुमने बीज को सम्हालना शुरू कर दिया, पानी सींचने लगे। अभी फेंक दो! फिर तुम्हारे भीतर विचार गहन होने लगा। अब तुम्हारे भीतर क्रोध का धुआं उठने लगा। जब क्रोध का धुआं पहली बार उठता है तो बड़ा महीन, बारीक रेखा की तरह होता है। इतना बारीक होता है कि अगर तुम ठीक उसी. वक्त उसको देखो तो पहचान ही न पाओगे कि यह क्रोध है या करुणा। सिर्फ ऊर्जा की एक धीमी रेखा उठती हुई मालूम होती है; अचेतन से एक छोटा सा बादल उठ रहा है। अभी रूप साफ नहीं है। अभी यह भी पक्का नहीं है कि यह क्या है। यह प्रेम है, क्रोध है, घृणा है, क्या है? सिर्फ भीतर एक बेचैनी उठ रही है, एक उत्तेजना उठ रही है, एक ऊर्जा उठ रही है। अभी सम्हल जाओ। अभी बीज में अंकुर आ रहा है; अभी पक्का नहीं है कि किस तरह का वृक्ष बनेगा। अभी तैयार हो जाओ। अभी फेंक दो। हर तरह की उत्तेजना जहरीली है। उत्तेजना को फेंक दो। अभी ही अपने को शांत कर लो। अभी ही शिथिल हो जाओ। अभी ही ध्यान में लीन हो जाओ। नहीं, तब तुम सहारा दिए जाओगे। तब तुम भीतर रस लोगे। तब धीरे-धीरे क्रोध का बादल अपना रूप स्पष्ट कर लेता है; उसकी प्रतिमा साफ हो जाती है। वह कहता है, मार डालो इस आदमी को! इसने हंसा, अपमान किया। समझता क्या है? अब तुम भीतर हत्या कर रहे हो; भीतर तलवारें उठा रहे हो। भीतर तलवारें उठाना बाहर तलवारें उठाने की पूर्व-तैयारी है। तुम रिहर्सल कर रहे हो। अभी रिहर्सल है; रुक जाओ। अगर रिहर्सल पूरा तैयार हो गया तो फिर नाटक भी करना पड़ेगा। क्योंकि नहीं तो मन कहेगा, इतना रिहर्सल किया, ऐसा समय बेकार गंवाया; अब करके ही दिखा दो। और जब तुम भीतर रस ले रहे हो तब क्रोध का जहर तुम्हारे रोएं-रोएं में फैल रहा है, तुम्हारे शरीर को लड़ने के लिए तैयार कर रहा है। तुम्हारी भीतर की पूरी ऊर्जा क्रोध की दिशा में रूपांतरित हो रही है। अब तुम लड़ने पहुंच 352

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