Book Title: Tao Upnishad Part 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 368
________________ Chapter 64 : Part 1 BEGINNING AND END That which lies still is easy to hold; That which is not yet manifest is easy to forestall; That which is brittle (like ice) easily melts; That which is minute easily scatters. Deal with a thing before it is there; Check disorder before it is rife. A tree with a full span's girth begins from a tiny sprout; A nine-storied terrace begins with a clod of earth. A journey of a thousand li begins at one's feet. अध्याय 64 : लवंड 1 आरंभ और अंत जो शांत पड़ा है, उसे नियंत्रण में रखना आसान है, जो अभी प्रकट नहीं हुआ है, उसका निवारण आसान है, जो बर्फ की तरह तुनुक है, वह आसानी से पिघलता है, जो अत्यंत लघु है, वह आसानी से बिनवरता है। किसी चीज के अस्तित्व में आने से पठले उससे निपट लो, परिपक्व होने के पहले ही उपद्रव को रोक दो। जिसका तना भरा-पूरा है, वह वृक्ष नन्छे से अंकुर से शुरू होता है, नीं मंजिल वाला छज्जा मुट्ठी भर मिट्टी से शुरू होता है, हजार कोसों वाली यात्रा यात्री के बर से शुरू होती है।

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