Book Title: Tao Upnishad Part 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 364
________________ ताओ उपनिषद भाग ५ 354 तो अपने हां कहने पर भरोसा मत करना; अपने न कहने से भयभीत भी मत होना । न कह कर भी तुम कर सकते हो, और हां कह कर भी तुम टाल सकते हो । अधिक लोग हां कहते ही इसलिए हैं, ताकि टालने में सुगमता हो जाती है। तो लाओत्से कहता है, 'जो फूहड़पन के साथ वचन देता है— मूर्च्छा में, प्रमाद में - उसके लिए अक्सर वचन पूरा करना कठिन होगा।' ऐसा वचन मत देना जिसे पूरा करना कठिन हो। जितना कर सको उससे कम का वचन देना । जो न कर सको, स्पष्ट कहना, न कर सकेंगे। क्योंकि ये सारे गुण तुम्हारे भीतर के जीवन को रूपांतरित करने में, निखारने में काम आएंगे। अन्यथा तुम व्यर्थ की चीजों में उलझते चले जाते हो । जो तुम नहीं कर सकते हो, कहते हो, कर देंगे। अब एक उलझन ले ली। अब यह होगी नहीं तो परेशानी है। और यह हो तो सकती नहीं; इसको करने में लगोगे तो परेशानी है। अगर बहुत ठीक से समझो तो ज्ञानी वचन देता ही नहीं। वह जो कर सकता है, करता है; जो नहीं कर सकता है, नहीं करता है । वचन नहीं देता। इसलिए तुम ज्ञानी को कभी भी वचन भंग करते न पाओगे। क्योंकि वह वचन देता ही नहीं । वचन पूरे करता है; देता कभी नहीं । और छोटी से छोटी चीज को भी वह छोटा मान कर नहीं चलता, क्योंकि सब छोटी चीजें बड़ी हो जाती हैं। छोटा मान कर चलोगे तो तुम खतरे में रहोगे। तुम सोचते हो, छोटा है, निबट लेंगे। लेकिन जितनी देर तुम स्थगित करते हो, चीजें बड़ी हो रही हैं। समस्याएं भी बढ़ती हैं, फैलती हैं, बड़ी होती हैं। 'जो अनेक चीजों को हलके-हलके लेता है, उसे अनेक कठिनाइयों से पाला पड़ेगा। इसलिए संत भी चीजों को कठिन मान कर हाथ डालते हैं। ' संत भी! जिनके लिए सभी कुछ सरल है। वे भी चीजों को कठिन मान कर हाथ डालते हैं। 'और इसी कारण उन्हें कठिनाइयों का सामना नहीं करना होता ।' इसे खयाल रखो। बीज से निबट लो; वृक्ष से निबटना बहुत मुश्किल होगा। हर चीज समय के जाते-जाते बड़ी होती चली जाती है, इसलिए कल पर मत टालो । बुराई से पूर्व-निवारण कर लो। अगर पूर्व-निवारण न हो पाए तो जब बुराई द्वार पर दस्तक दे तभी निवारण कर लो। उसे घर में मेहमान मत बनाओ। उसे अपने भीतर जगह मत दो। क्योंकि सारा संसार तुम्हें कर्म में खींच रहा है। और तुमने अगर निष्क्रिय होना चाहा है तो तुम इस सारे संसार से एक बिलकुल ही विभिन्न आयाम में प्रवेश कर रहे हो। तुम्हें सारा रंग-ढंग बदलना पड़ेगा। जीसस ने कहा है, जो तुम्हारा कोट छीने, उसको कमीज भी दे दो; क्योंकि कहीं लौट कर फिर कमीज लेने न आए। जीसस ने कहा है, जो तुम्हें एक मील चलने के लिए बाध्य करे कि मेरा बोझ ले चलो, तुम दो मील तक चले जाओ। क्योंकि हो सकता है, संकोचवश दो मील न कह सका हो। जो तुम्हारे एक गाल पर थप्पड़ मारे, तुम दूसरा भी कर दो। कहीं एक थप्पड़ उसने बचा रखी हो, फिर लौट कर न आए। अभी निबटारा कर लो। चीजों से बीज में निबट लो। उनको वहीं शांत कर दो। और कर्म के जाल में पूरा संसार घूम रहा है भंवर की तरह ! तुम्हें अगर निष्कर्म में जाना है तो बहुत ही सावधानी चाहिए कि कोई तुम्हें कर्म में न खींच ले । सब तुम्हें कर्म में खींचने को आतुर हैं। सब चाह रहे हैं कि तुम कर्म में लीन हो जाओ। क्योंकि सबकी आकांक्षाएं, वासनाएं कर्मों की हैं। और तुमने अकर्म साधना चाहा, तुम इस जगत से किसी दूसरे जगत में प्रवेश करने को तत्पर हुए हो। इस जगत में इससे बड़ी कठिन कोई बात नहीं है। इसलिए बहुत होश चाहिए कि कोई तुम्हें खींच न ले ।

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