Book Title: Tao Upnishad Part 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 356
________________ ताओ उपनिषद भाग ५ लेकिन जरा भी असर नहीं पड़ा। रत्ती भर असर नहीं पड़ा। बराबर बिक्री वैसी ही चल रही है। एकाध दफे लोगों ने पढ़ लिया होगा अब वे पढ़ते भी नहीं होंगे। वह धूमिल हो गया। बार-बार पढ़ने से भूल ही गए। स्वास्थ्य के लिए तो किसी ने सिगरेट पीनी अगर शुरू की होती, तो स्वास्थ्य के लिए यह घातक है यह जान कर वह बंद कर देता। पत्नी को पसंद पड़ेगी, इसलिए अगर किसी ने सिगरेट पीनी शुरू की होती, तो पत्नी को पसंद नहीं पड़ती तो बंद कर देता। मगर ये तो कारण ही न थे शुरू करने के। तो जिन कारणों से तुम छोड़ना चाहते हो वे तो झूठे हैं और जिस कारण से तुम पीते हो उसको तुमने कभी देखा ही नहीं। अखबार में जाने की जरूरत नहीं, न पत्नी से पूछने की जरूरत है। अपने भीतर जाओ। अपनी सिगरेट की तलफ को पहचानोः कैसे उठती है? क्यों उठती है? कब उठती है? क्या कारण होता है तुम्हारे भीतर जब तुम अचानक सिगरेट पीना चाहते हो? कब तुम्हारा हाथ खीसे में चला जाता है, पैकेट निकल आता है, माचिस जल जाती है, तुम धुआं को बाहर-भीतर करने लगते हो? उस पूरी मनोदशा को समझो। और सबकी अलग-अलग मनोदशाएं होंगी। हर आदमी सिगरेट एक ही कारण से नहीं पी रहा है। सबके अलग कारण होंगे। कोई इसलिए पी रहा है कि मां से स्तन जल्दी छूट गया। अभी स्तन से और पीना चाहता था, लेकिन मां ने जल्दी स्तन छुड़वा दिया। आदिवासियों में सात-आठ साल तक, नौ साल तक भी बच्चा मां का स्तन पीता है। वह स्वाभाविक मालूम पड़ता है। कोई सभ्य समाज नौ साल के बच्चे को दूध नहीं पीने देगा। क्योंकि बड़ी बेहूदी बात मालूम पड़ती है। नौ साल का बच्चा तो काफी बड़ा बच्चा है, ढाई साल, तीन साल में, और भी पहले छुड़ाने की कोशिश शुरू हो जाती है। जो बहुत सभ्य समाज हैं, अमरीका, वहां बच्चे को दूध मां देना ही पसंद नहीं करती। वह उसको पहले ही बोतल से पिलाया जाता है। जिनका बचपन में मां ने स्तन जल्दी छुड़ा लिया है, उनके भीतर एक जरूरत रह गई है अचेतन में कि कोई गरम, कुनकुनी चीज दूध के जैसी उनके भीतर जाती रहे। अब दिन भर अगर आप दूध पीएं तो नुकसानदायक होगा। सिगरेट सुविधापूर्ण है; जब चाहो तब पी सकते हो। बोतल लिए फिरो दूध की, वह भी अच्छा नहीं लगेगा। और ठीक बोतल से पीयो, तो लोग समझेंगे पागल हो गए, कि दिमाग खराब हो गया। सिगरेट पूरा काम कर देती है। पैकेट की तरह खीसे में ले सकते हो। कोई नहीं समझता कि इसमें पागल हो गए। क्योंकि सभी पागल हैं उस तरह के, सभी पी रहे हैं। और फिर यह कोई भोजन भी नहीं है जो पेट को भर दे; सिर्फ दूध का आभास है। वह जो कुनकुनापन है, दूध की जो गरमी है, उष्णता है, और स्तन का आभास है कि मुंह में सिगरेट डाल ली तो स्तन जैसा मालूम होता है। फिर उसमें से गरम धुआं भीतर जाने लगा तो दूध भीतर जाने लगा। सौ में से पचास प्रतिशत लोग स्तन के सब्स्टीट्यूट की तरह सिगरेट पी रहे हैं। मनुष्य-जाति पागल मालूम होती है स्त्री के स्तनों के लिए। पशुओं में तुमने कभी किसी पुरुष-पश को मादा-पशु का स्तन जांचते-परखते देखा? कि कोई तस्वीर लिए घूम रहा है, कि प्ले-बॉय की कापी रखे हुए है, कि जब मौका लगा एकांत में तो ध्यान कर रहा है? लेकिन पुरुष-जाति स्त्री के स्तन से बड़ी आकर्षित है। चित्रकार चित्र बना रहे हैं। फिल्म बनाने वाले फिल्म बना रहे हैं; कवि कविताएं लिख रहे हैं; कहानीकार कहानियां गढ़ रहे हैं; मूर्तिकार मूर्ति बना रहे हैं। जैसे स्त्री के स्तन का एक दीवानापन है। और सब तरफ स्त्री का स्तन उभर कर बैठा हुआ है। चाहे मंदिर में बैठी देवी हो, चाहे वेश्यालय में बैठी हुई वेश्या हो, स्तन उभर कर बैठा है। भक्त की भी नजर उस पर हैप्रेमी की भी नजर उस पर है; राहगीर भी उसी को देख रहा है। आखिर स्तन का ऐसा क्या मैनिया है? यह क्या पागलपन है? अगर कहीं दूसरे चांद-तारे से कोई आदमी यहां उतरे तो बड़ा हैरान होगा कि इन आदमियों को यह स्तन का मैनिया क्यों पकड़ा हुआ है? आखिर क्यों स्तन के दीवाने हैं? 346

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