Book Title: Tao Upnishad Part 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 346
________________ ताओ उपनिषद भाग ५ अगर हर व्यक्ति एक बुरे आदमी को सुधारने में लग जाए, भला वह.बुरा आदमी सुधरे या न सुधरे, लेकिन आखिर में वह व्यक्ति पाएगा कि उसकी सुधारने की कोशिश में मैं सुधर गया हूं। एक छोटा बच्चा पूरे परिवार को बदल सकता है। क्योंकि बाप को मुश्किल हो जाता है-कैसे सिगरेट पीए इस बच्चे के सामने? अगर बाप को बच्चे से प्रेम है तो सिगरेट फेंक देगा। अगर बाप को बच्चे से प्रेम है तो झूठ बोलना बंद कर देगा। अगर तुम किसी एक आदमी के भी जीवन को रूपांतरित करने के खयाल से भर जाओ तो अनिवार्य हो जाएगा कि तुम अपने को बदल लो। अन्यथा तुम बदलोगे कैसे? दूसरे को बदलने की कोशिश अपने को बदलने की बड़ी खूबसूरत कीमिया है। दूसरे को बदलने की चेष्टा स्वयं के लिए बड़ी से बड़ी साधना है। इसलिए इसकी फिक्र मत करो कि कब तुम पूरे होओगे, कब तुम्हारा रूपांतरण पूरा होगा। तुम्हारे पास जो भी छोटा-मोटा है तुम उसी को बांटना शुरू कर दो। अगर कुछ न हो तो जो अमृत वचन तुमने मुझसे सुने हैं, वही तुम लोगों को कहो। अगर तुमने कुछ थोड़ा सा आचरण का खजाना निर्मित किया है, उसमें से बांटो। अगर स्वभाव की तुम्हें कोई झलक मिली है तो उसमें लोगों को भागीदार बनाओ। और तुम पाओगे, जितना तुम बांटते हो उतना बढ़ता है। और जितना तुम दूसरों को बदलने में लगते हो, उतना तुम्हारी क्रांति होती चली जाती है। तुम परोक्ष में बदलते जाते हो। दुनिया में कोई भी व्यक्ति अपने को सीधा बदलना बहुत कठिन पाता है। तुम्हारी अपनी सब पहचान दूसरे के द्वारा है। तुम्हें लोग सुंदर कहते हैं तो तुम अपने को सुंदर समझते हो। तुम्हें लोग भला कहते हैं तो तुम भला समझते हो। तुम्हारी पहचान के लिए दूसरे का दर्पण जरूरी है। अकेले में तुम कुछ भी न समझ पाओगे कि तुम कौन हो, क्या हो। पश्चिम में एक बहुत बड़ा यहूदी विचारक हुआ, मार्टिन बूवर। वह कहता है कि तुम्हारे संबंधों में ही तुम्हारे जीवन की सारी क्रांति फलित होगी। कृष्णमूर्ति का जोर भी अंतर-संबंधों पर है। वे कहते हैं कि जितना ही तुम अपने संबंधों को समझोगे-पति-पत्नी के संबंध को, मां-बेटे के संबंध को, बेटे-बाप के संबंध को, मित्र-मित्र के संबंध को-और जितने ही तुम प्रेम से भरोगे, और जितना ही तुम दूसरे के जीवन में शुभ का पदार्पण चाहोगे, चाहोगे कि इसके जीवन में मंगल की वर्षा हो जाए, तुम अचानक पाओगे कि तुम तो दूसरे के जीवन में मंगल की वर्षा कर रहे थे, लेकिन तुम्हारे आंगन में वर्षा हो चुकी। जिसने दूसरों के लिए फूल बरसाने चाहे, उसे पता ही नहीं चलता कि कब आकाश खुल जाता है और उसके जीवन में फूल ही फूल बरस जाते हैं। आज इतना ही। 336

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