Book Title: Tao Upnishad Part 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 323
________________ मण गुण से बड़ी कोई शक्ति बहीं हां, प्रेम न हो तब बात अलग। प्रेम हो तो स्त्री हमेशा जीतती है। नदी ही न हो तो बात अलग। तो गिरेगा क्या? लेकिन अगर नदी हो प्रेम की तो स्त्री हमेशा जीतती है। क्योंकि वह नीचे रखती है अपने को; तुम्हारी नदी को उसमें गिरना ही पड़ेगा। इसमें कोई उपाय नहीं है। और स्त्री मौन से जीतती है, वह बोलती नहीं। वह कहती भी नहीं, यद्यपि उसका पूरा व्यक्तित्व कह देता है। अगर स्त्री को कहीं नहीं जाना है और चाहते हो तुम कि जाए तो उसके पूरे व्यक्तित्व से भनक पड़ने लगती है कि वह जाना नहीं चाहती। कहेगी नहीं। जो स्त्री कह दे वह ठीक-ठीक स्त्री नहीं है। क्योंकि जो बिना कहे हो जाए उसे कह कर क्या करवाना? जो मौन से हो जाता हो उसे बोल कर कहलवाना बिलकुल व्यर्थ है। और बात का रस ही खो जाता है। स्त्री पूरे व्यक्तित्व से कहती है। स्त्री ज्यादा टोटल है, समग्र है। _ अक्सर ऐसा होता है-मनोवैज्ञानिक इस खोज पर बड़े हैरान हुए हैं-अक्सर ऐसा होता है कि पति है, पत्नी है, छोटा बच्चा है। पति चाहता है कि क्लब जाना, या कहीं मंदिर जाना, सिनेमा जाना; पत्नी नहीं जाना चाहती। वह कहेगी नहीं; अगर प्रेम है तो वह बिलकुल नहीं कहेगी। क्योंकि प्रेम का मतलब ही यह है कि वह छाया है; पति जहां जाए वह जाए। वह नहीं कहेगी। लेकिन वह जाना नहीं चाहती। उसके सारे व्यक्तित्व से तरंगें उठती हैं न जाने की। बच्चा फौरन इनकार करने लगेगा। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि बच्चा माध्यम हो जाता है तत्क्षण। वह खांसने लगेगा कि मेरी तबीयत खराब है, यह है, वह है। और वह बच्चा बाधा खड़ी करेगा। इस पर बहुत से अध्ययन किए गए हैं कि यह मामला क्या है? यह बच्चा कैसे पहचान लेता है? बच्चा अभी ज्यादा सरल है। अभी बच्चा हृदय ही हृदय है। अभी बच्चा स्त्री के ज्यादा करीब है, पुरुष के उतने करीब नहीं है। इसलिए मां के भीतर जो भी घटित होता है उसकी तरंगें बच्चे को पहले लग जाती हैं। पति को देर लगेगी तरंगें पहुंचने में; वह काफी फासले पर है। और बच्चा फौरन घोषणा कर देगा कि उसकी तबीयत खराब है, या उसे बुखार मालूम हो रहा है, या वह नहीं जाना चाहता। और मां ने एक शब्द नहीं कहा है बच्चे को। लेकिन उसकी भाव-भंगिमा, उसके होने का ढंग-और बच्चा पकड़ लेता है। अगर पुरुष बहुत प्रेम करता है तो वह भी पकड़ लेता है। क्योंकि जो पुरुष प्रेम करता है अपनी पत्नी को वह • अपनी पत्नी के पास बच्चे जैसा ही हो जाता है। पत्नी का स्वभाव बहुत गहरे में मां का स्वभाव है। स्त्री का स्वभाव मां का स्वभाव है, और पुरुष का स्वभाव बहुत गहरे में बेटे का स्वभाव है। इसलिए हिंदू ऋषिओं ने तो आशीर्वाद दिया है कि वही विवाह सफल है जिसमें अंत में पति बेटे की तरह हो जाए। हिंदू ऋषि आशीर्वाद देते थे नव वर-वधू को तो वे कहते थे कि दस तुम्हारे बेटे हों और ग्यारहवां पति तुम्हारा बेटा हो जाए। अंतिम सफलता प्रेम की वहां है जहां पत्नी मां हो गई और पति बेटा हो गया। उसका अर्थ इतना ही हुआ कि अब पति भी इतने करीब आ गया, जैसे कि स्त्री के गर्भ में समा गया। इतनी निकटता आ गई कि अब स्त्री का मौन भी उसे समझ में आता है। स्त्री अपने मुंह से 'नहीं' कहे, वह शोभा नहीं देता, लेकिन उसकी तरंगें कह दें और पति समझ ले, वही शोभा देता है। छाया की तरह स्त्री रहेगी और चलाएगी। मौन रहेगी और उसका मौन भी बड़ा वाचाल है। वह मौन से कह देगी। और जहां प्रेम है वहां यह अंतरंग वार्ता समझ में आ जाती है। प्रेमी बहुत ज्यादा बोलते नहीं। पति-पत्नी बोलते हैं, क्योंकि वहां प्रेम ज्यादा होता नहीं। प्रेमी ज्यादातर चुप बैठते हैं। क्योंकि मौन इतना सुखद है कि बोलना क्या! पति-पत्नी बोलते हैं कि न बोलें तो न मालूम कोई झगड़ा-कलह न खड़ा हो जाए। तो कुछ न कुछ बातचीत चलाते हैं। पति सोच-सोच कर कुछ बात निकालता है कि 313

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