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ताओ उपनिषद भाग ५
दूसरा चरित्र है जो दमन से पैदा नहीं होता, जो जागरण से पैदा होता है। क्रोध को दबाना नहीं है, क्रोध को समझना है। लोभ को दबाना नहीं है, लोभ को समझना है। लोभ क्या है? उसके पक्ष-विपक्ष में होने की आवश्यकता नहीं है, उसकी निंदा भी नहीं करनी है, क्योंकि परमात्मा ने जो भी दिया है कोई प्रयोजन होगा। अस्तित्व में निष्प्रयोजन तो कुछ भी नहीं है। अगर क्रोध दिया है तो कोई आधार होगा। क्रोध दिया है तो कारण होगा। क्रोध दिया है तो कोई सदुपयोग होगा। क्रोध दिया है तो इस ऊर्जा से कुछ निर्मित हो सकता होगा। तुम्हें पता न हो आज कि क्या करें। _ तुम्हें पता न हो कि घर में सितार रखा है, यह संगीत इससे पैदा होता है। और तुमने कभी संगीत इससे पैदा होते देखा भी नहीं। कभी कोई चूहा धक्का मार देता है तो रात में नींद टूट जाती है। कभी कोई बच्चा आकर तार छेड़ देता है तो घर में सिर्फ शोरगुल मच जाता है। इससे तुमने संगीत पैदा होते देखा नहीं; क्योंकि संगीतज्ञ के हाथों ने इसे छुआ नहीं। तुम अपरिचित हो। सितार भी शोरगुल पैदा करेगा, अगर तुम जानते नहीं कि कैसे बजाएं। ऐसा ही शोरगुल तुम्हारे व्यक्तित्व में हो रहा है। तुम जानते नहीं कि कैसे जीवन को बजाएं, जीवन की बांसुरी से कैसे सौंदर्य उठे, संगीत उठे। इससे क्रोध उठ रहा है, इससे लोभ उठ रहा है। लोभ और क्रोध तो सिर्फ अभाव हैं। वे तो यह बताते हैं कि तुम्हें बजाना न आया। वे तो यह बताते हैं कि तुम राग को सम्हाल न पाए। वे तो यह बताते हैं कि जो तुम्हें मिला था, उसका तुम संयोजन न बिठा पाए।
तुम्हारी दशा वैसी है कि आटा रखा हो, पानी रखा हो, घी रखा हो, सिगड़ी जल रही हो-और तुम भूखे बैठे हो, क्योंकि रोटी बनाने का तुम्हें कुछ पता नहीं है। सब मौजूद है, सिर्फ मिलाना है ठीक अनुपात में, अंगीठी पर चढ़ाना है; ठीक समय देना है। जब भूख है तो पास ही कहीं भोजन छिपा होगा; क्योंकि भूख अकारण नहीं हो सकती। और भोजन न हो तो भूख नहीं दी जा सकती। और फिर हमने उनको भी देखा है जो तृप्त हो गए। हमने बुद्ध को देखा है, जिनकी भूख जा चुकी। उन्होंने भोजन बना लिया है। उन्होंने रोटी तैयार कर ली है। आटा अकेला नहीं खाया जा सकता। खाओगे, पेट में दर्द होगा, तकलीफ होगी। आटे के दुश्मन हो जाओगे। पानी अकेला पीओगे, भूख नहीं । मिटेगी। थोड़ी देर पेट भर जाएगा, फिर खाली हो जाएगा। और जोर से भूख लगेगी। आग से सेंकते रहोगे हाथ, पसीना बहेगा, भूख न मिटेगी। तत्व सब मौजूद हैं; रोटी बनानी है। सितार तैयार है; सिर्फ अंगुलियां साधनी हैं।
जिसे तुम क्रोध कह रहे हो, वही करुणा बनेगा। वही ऊर्जा जिसे तुम लोभ कह रहे हो, वही दान बनेगा। वही ऊर्जा-जिस दिन तुम संगीतज्ञ हो जाओगे, जिस दिन तुम बजाना सीख लोगे-जिसे तुम काम कह रहे हो, वही ब्रह्मचर्य बनेगा। वही ऊर्जा! एक ही ऊर्जा है; जब तुम उसे भ्रष्ट होने देते हो तो क्रोध हो जाती है, जब तुम उसे सम्हाल लेते हो, रूपांतरित कर लेते हो, करुणा हो जाती है। एक ही ऊर्जा है। जब तुम छिद्रों से बहने देते हो तो कामवासना हो जाती है, जब तुम अछिद्र हो जाते हो और उसे संयम में साध लेते हो-संयम यानी संगीत-वही ऊर्जा ब्रह्मचर्य हो जाती है।
जो भी तुम्हारे पास है, सभी सार्थक है। तुम बड़े धनी हो। यह अस्तित्व इतना समृद्ध है कि यहां गरीब पैदा होते ही नहीं। और अगर गरीब हो, अपने कारण हो। अगर रो रहे हो, अपने कारण। यह सारा जगत हंसता हुआ है। यहां रोने में तुम्हारी कोई भूल हो रही है। और उस भूल में तुम ऐसा मत करना कि यह आटा गलत है, फेंक दो; कि यह आग गलत है, बुझा दो; कि पानी भूख नहीं मिटाता, उलटा दो। फिर तो तुम भूख को कभी भी न बुझा पाओगे; क्योंकि तुमने साधन ही नष्ट कर दिए।
तो मैं तुमसे नहीं कहता कि तुम क्रोध को फेंक दो। वह आटा है। मैं तुमसे नहीं कहता कि तुम कामवासना को बुझा दो। वह आग है। मैं तुमसे नहीं कहता कि तुम लोभ के दुश्मन हो जाओ। क्योंकि वह जल है। उन सबसे मिल कर तुम्हारी भूख मिटेगी। उन्हें समझो, उन्हें पहचानो, उनका सम्यक अनुपात खोजो। उनके प्रति बोध।