Book Title: Tab Hota Hai Dhyana ka Janma Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 9
________________ * जिज्ञासा का यह स्वर मुहुर्मुहुः होता है मुखर एक योगी के लिए है यह ध्यान सामान्य आदमी क्यों करे अपना संधान? ध्यान से निकम्मा बनता है व्यक्ति हम क्यों करें कुंठित कर्मजा शक्ति? क्या कभी मिट सकती है चंचलता? और फल सकती है ध्यान की कल्पलता? जिसने क्षण भर भी न देखा अपना सद्म उसके भीतर कब हो सकता ध्यान का जन्म? * महाप्रज्ञ कहते हैंकेवल योगियों के लिए नहीं है ध्यान उन सबके लिए जरूरी है स्व-संधान जो चाहते हैं अपनी समस्या का समाधान स्वस्थ, शांत एवं समाधिपूर्ण जीवन का वरदान अकर्मण्यता नहीं, परम पुरुषार्थ है ध्यान युग की आवश्यकता है ध्यान मन, वाणी और शरीर का करें निरोध निश्चित प्रगटेगा अपना बोध और तब होगा ध्यान का जनन खिलेगा मरझाया जीवन उपवन । प्रेक्षा वर्ष का संदर्भ प्रस्तुत है जीवित/प्रायोगिक धर्म महाप्रज्ञ का अनुपमेय सृजन मुनिश्री दुलहराज के आत्मीय सहकार से निष्पन्न जिसमें है जीवन के हर पक्ष का स्पर्श बन सकता है एक आदर्श आप इसे पढ़ें ही नहीं, जीएं प्रेक्षा का अमृत पीएं बुझेगी निश्चित अध्यात्म की प्यास मिलेगा जीवन को निर्मल उच्छ्वास । मुनि धनंजय कुमार ११.११.९५ जैन विश्व भारती, लाडनूं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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