Book Title: Tab Hota Hai Dhyana ka Janma Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 8
________________ संपादकीय * एक दिन अवस्थित था मैं चेतना के तट पर सामने विस्तीर्ण था अवचेतन का महासागर चंचल जल का पूर्वरंग उछलती-मचलती तरंग टकराई तट से उत्ताल ऊर्मियां बिखेर गई शंख-सीपियां फैली सूर्य की प्रकाश-रश्मियां चमकी सीपियां, चुंधियां गई अंखियां नयन हुए निमीलित विलीन हो गया बाह्य जगत् खुला सहसा अभ्यन्तर द्वार सामने था एक नया संसार । और........ मुंदी आंखों में उभरा वह संसार जोड़ रहा था आत्मा का आत्मा से तार चंचल लहरों को चीर कर संयत और संगप्त होकर छू ली अतल गहराई दर्शन केन्द्र पर उभरी अरुणाई विलीन हो गया मन न चिंतन न वचन स्थिर शिथिल तन पूर्ण जागृत था चेतन केवल चैतन्य का बोध स्व-संवेदन आत्म-संबोध । महाप्रज्ञ का मौलिक उद्बोध अनुभूत सत्य का प्रबोध यही है ध्यान का अवतरण जीवन का पवित्र/मंगल क्षण। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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