Book Title: Tab Hota Hai Dhyana ka Janma
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 6
________________ प्रस्तुति 'ज्ञान-ध्यान' एक वाक्यांश है। ज्ञान के लिए ध्यान आवश्यक है और ध्यान के लिए ज्ञान आवश्यक है। प्रकृति की दृष्टि से दोनों एक हैं और प्रक्रिया की दृष्टि से दोनों दो हैं। ज्ञान में चल अंश विद्यमान है और ध्यान में स्थिर अंश। चंचलता जितनी सहज है स्थिरता उतनी सहज नहीं है। शरीर, वाणी और मन के साथ चलने का जन्म सिद्ध अभ्यास है. किन्तु शरीर, वाणी और मन से परे जाने का अभ्यास नहीं है। जो नहीं है, वह जब 'है' में बदलता है, तब होता है ध्यान का जन्म । देह की आसक्ति चंचलता पैदा करती है। बोलने की पृष्ठभूमि में आसक्ति छिपी रहती है। मन भी उसका वाहक बना रहता है। जिस क्षण शरीर, वाणी और मन के पीछे खड़ी आसक्ति का दर्शन होता है, उसी क्षण ध्यान व्यक्त हो जाता है चंचलता की अपनी समस्याएं हैं तो ध्यान के सामने भी कम समस्याएं नहीं हैं। आवश्यक है ध्यान के विषय का ज्ञान, अनुकूल वातावरण, प्रारम्भ बिन्दु को पकड़ना, ध्यान के फलित के विषय में असंदिग्ध होना। सबसे बड़ी समस्या है मन से परे जाने के लिए मन का ही सहारा लेना। समस्या के कुछ बिन्दुओं पर विचार करने के लिए प्रस्तुत पुस्तक का यत् किंचित् मात्रा में उपयोग हो सकेगा। इसमें न अति गहराई में जाने का प्रयत्न है और न दिशा का अतिक्रमण है, मध्यम मार्ग है। इस पर चलकर ध्यान की गहराई तक पहुंचा जा सकता है, बस इतना पर्याप्त है। प्रस्तुत पुस्तक के संपादन में धनंजयकुमार ने निष्ठापूर्ण श्रम किया है। आचार्य महाप्रज्ञ 11 नवम्बर, 1995 जैन विश्व भारती, लाडनूं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 194