Book Title: Subodh Sanskrit Dhatu Rupavali Part 04
Author(s): Rajesh Jain
Publisher: Tattvatrai Prakashan
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________________ मूत्र् (मूत्रयति-ते)- अमुमृत्रत् / रुक्ष् (रुक्षयति-ते)- अरुरुक्षत् / पार (पारयति-ते)- अपपारत् / तीर् (तीरयति-ते)- अतितीरत् / कर्तृ (कर्तयति-ते)- अचकर्तत् / चित्र (चित्रयति-ते)- अचिचित्रत्-त / अंश् (अंशयति-ते)- आंशशत् / मिथ् (मिश्रयति-ते)- अमिमिश्रत् / संग्राम् (संग्रामयति-ते)- अससंग्रामत्-त / / अन्ध् (अन्धयति-ते)- आन्दधत् / अङ्क (अङ्कयति-ते)- आञ्चकत् / सुख् (सुखयति-ते)- असुसुखत् / दु:ख् (दु:खयति-ते)- अदुदुःखत् / रस् (रसयति-ते)- अररसत् व्यय् (व्यययति-ते)- अवव्ययत् / रूप (रूपयति-ते)- अरुरूपत् / छेद् (छेदयति-ते)- अचिच्छेदत् / छद् (छदयति-ते)- अचिच्छदत् / व्रण (व्रणयति-ते)- अवव्रणत् / वर्ण (वर्णयति-ते)- अववर्णत् / वस् (वसयति)- अववसत् / प्रेखोल (प्रेवोलयति-ते)-अपिप्रेखोलत् / आन्दोल् (आन्दोलयति-ते)-आन्दुदेभत् / विडम्ब (विडम्बयति-ते)- अविविडम्बत्-त / शास् (शासयति-ते)- अशशासत् / लोच् (लोचयति-ते)- अलुलोचत् / चकास् (चकासयति-ते)-अचीचकासत्/ अचचकासत् / 14 25) सुनव संवत धातु पावली xxx

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