Book Title: Sramana 2015 04
Author(s): Sundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 6
________________ Contents 1-9 10-16 17-28 - 29-34 35-45 कुन्दकुन्द साहित्य में श्रमण और श्रमणाभास प्रो० कमलेश कुमार जैन स्याद्वादकल्पलता में शब्द की द्रव्यत्व सिद्धि डॉ० हेमलता जैन मुद्राराक्षस में प्रयुक्त प्राकृतों का सार्थक्य डॉ० रजनीश शुक्ल आगमों में वादविज्ञान डॉ. श्वेता जैन . जैन एवं बौद्ध दर्शन में प्रमा का स्वरूप एवं उसके निर्धारक तत्त्व डॉ० ज्योति सिंह CONCEPT OF NIKŞEPA (POSITING) IN JAINA PHILOSOPHY Dr. Shriprakash Pandey THE COSMOPOLITAN VISION OF YAŚOVLJAYA GANI Jonardon Ganeri स्थायी स्तम्भ पार्श्वनाथ विद्यापीठ समाचार जैन जगत् साहित्य सत्कार 47-69 70-82 83-93 94-95 96 सुरसुंदरीचरिअं

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