Book Title: Sramana 2010 04 Author(s): Ashok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi View full book textPage 5
________________ iv: श्रमण, वर्ष ६१, अंक २ / अप्रैल-जून १० विदेशी विद्वानों को जोड़ा गया है जिससे यह पत्रिका विदेशों में भी अपने चरण मजबूती से जमा सके। हम इसमें कुछ नए आयाम जोड़ना चाहते हैं जिससे यह विद्वानों के साथ जन सामान्य के लिए भी प्रतीक्षणीय हो जाए। डॉ. सागरमल जैन जो इस विद्यापीठ के पूर्व निदेशक रहे हैं तथा वर्तमान में आप अपने प्राच्य विद्यापीठ के संचालक व निदेशक होकर भी इस विद्यापीठ के संरक्षक सदस्य भी हैं, ने ई. सन्. १९९९ में ई. सन् १९९७ तक श्रमण में प्रकाशित लेखों की सूची ( वर्ष क्रमानुसार, लेखकानुसार तथा विषयानुसार) 'श्रमण अतीत के झरोखे में शीर्षक से प्रकाशित की थी। आगे के लेखों की अद्यतन सूची को हम श्रमण के अक्टूबर-दिसम्बर २०१० के अंक में प्रकाशित करेंगे। 'श्रमण' की गुणवत्ता के बारे में आपकी सम्मतियाँ और सुझाव आमन्त्रित हैं। आपसे प्राप्त सम्मतियों को हम पत्रिका में संक्षेप में प्रकाशित करेंगे। हम यह भी चाहते हैं कि पत्रिका में विभिन्न मतों को तो दिया जाए परन्तु विवादात्मक लेख न छापे जाएँ। लेख तुलनात्मक तथा वैज्ञानिक पद्धति से लिखे गए हों, साथ ही तर्कसंगत और आगम प्रमाण से संपुष्ट हों। यदि किसी लेख विशेष में कोई विवादास्पद कथन आता भी है तो उसे लेखक का मन्तव्य माना जाय, श्रमण सम्पादकों का नहीं। यद्यपि इस अंक के प्रकाशन में सावधानी वर्ती गई है फिर भी समयाभाव के कारण कुछ अशुद्धियाँ रह गई हैं । हम आशा करते हैं पाठकगण हमें क्षमा करेंगे। हम पूरा प्रयास करेंगे कि आगामी अंकों में अशुद्धियाँ न रहें। सम्पादक सुदर्शनलाल जैनPage Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 130