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रयणचूडरायचरियं में वर्णित अवान्तर कथाएँ एवं उनका मूल्यांकन
एक धीवर के द्वारा बचाया गया। तब सोमप्रभ ने सोचा कि धन अनर्थ की जड़ है। बहुत पुरुषार्थ करने पर भी वह बिना देव की सहायता से प्राप्त नहीं हो सकता। ऐसा सोचकर सोमप्रभ चामुण्डा देवी के मन्दिर में जाकर सो गया ।
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५. सुरखंड - चोर और सोमप्रभ - जब सोमप्रभ ब्राह्मण चामुण्डा देवी के मन्दिर में सो रहा था तभी राजा के सैनिकों से पीछा किया जाता हुआ सुरखंड नामक चोर उस मन्दिर में प्रविष्ट हुआ । उसने चोरी का माल सोमप्रभ के सिर के नीचे रख दिया। प्रात:काल रक्षकों के द्वारा सोमप्रभ को चोर के रूप में पकड़ लिया गया और सुर राजा के समक्ष उपस्थित किया गया। सुरकेतु राजा ने निरपराधी सोमप्रभ के बेध का आदेश दे दिया। सोमप्रभ को जब शूली पर चढ़ाया जा रहा था तब विद्याधरों ने वहां आकर उसको छुड़ा लिया। उसकी दशा पर करुणा करते हुए विद्याधरों ने सोमप्रभ को पंच नमस्कार मंत्र का जाप करने को कहा। उस मंत्र के प्रभाव से वह सोमप्रभ नामक ब्राह्मण मृत्यु के बाद धूमकेतु नाम का यक्ष हुआ। एक बार जब वह रिष्टपुर नगर से निकला तो उसने सुरकेतु राजा को देखकर पूर्वजन्म के वैर के कारण उसे समुद्र में फेंक दिया और सारे नगर को निर्जन बना दिया तथा सुरनन्दा राजकुमारी को वानरी रूप प्रदान कर वह धूमकेतु-यक्ष उसकी रक्षा करता हुआ वहीं रहने लगा। ६. केशव श्रावक की कथा श्रेणिक राजा के द्वारा सोमप्रभ ब्राह्मण के दुःखों का कारण पूछने पर गौतम स्वामी ने सोमप्रभ के पूर्व जन्म के प्रसंग में मन्दिर के द्रव्य को हड़पने वाले केशव श्रावक की कथा इस प्रकार कही
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क्षेमंकर नगरी में केशव नामक एक श्रावक रहता था। वह नगर में स्थित देवमन्दिर के द्रव्य की सार संभाल करता था। एक बार अकाल पड़ जाने पर उसने मन्दिर के द्रव्य से पांच हजार रुपये व्यापार के लिये चुरा लिये। व्यापार में लाभ कमाकर उसने मूल धन तो मन्दिर के भंडार में जमा करा दिया किन्तु उसका लाभांश लोभ के कारण स्वयं रख लिया। तब मन्दिर के द्रव्य का स्वयं उपयोग करने से अशुभ कर्मों के उदय से, वह केशव श्रावक महादरिद्र हो गया। और भयंकर रोग से पीड़ित होकर मृत्यु को प्राप्त हो गया। अशुभ कर्म के उदय से वह क्रमशः कुत्ता, मृग, सर्प, महामच्छ आदि के रूप में जन्म लेता रहा और दुःख पाता रहा ।
तिर्यञ्च योनि के बाद वह अम्बश्री व्यापारी के यहां पुत्री के रूप में उत्पन्न हुआ। उसका नाम धनवती रखा गया । यौवन प्राप्त होने पर धनवती का विवाह पुण्डरिगिणी पुरी के निवासी वेश्रमण वणिक पुत्र से किया गया। धनवती के पूर्वजन्म के अशुभ कर्मों के कारण वेश्रमण को व्यापार में घाटा होने लगा तथा उसके मित्र और बांधव लोग भी उसे छोड़ने लगे। यह देखकर वेश्रमण ने धनवती को पीहर में छोड़ दिया।
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